जनसत्ता 23 मई, 2014 : इन चुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया कि नरेंद्र मोदी अपने दल से बड़े हैं। वे मालवा की इस कहावत के चरितार्थ हैं कि‘दस हाथ की कंकड़ी में बीस हाथ का बीज’। उनके ऐसा ‘वैराट्य’ ग्रहण करते ही उनका दल छिलके की तरह नीचे गिर गया है। वे स्वयंसिद्ध सत्ता की उस धार में बदल चुके हैं, जिसे अब दल की पुरानी आडवाणी-अटल छाप म्यान...
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वाम के लिए सबक- अरुण माहेश्वरी
जनसत्ता 21 मई, 2014 : सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा की भारी लेकिन एक प्रकार से प्रत्याशित जीत ही हुई है। चुनाव प्रचार के दौरान ही इसके सारे संकेत मिलने लगे थे। फिर भी हमारे इधर के कई मंतव्यों से यह साफ है कि हम सामने दिखाई दे रहे इस सच को संभवत: समझ या स्वीकार नहीं पा रहे थे। हालांकि हमने ही अपनी एक टिप्पणी...
More »दिल की जुबान या बाजार की भाषा?- प्रभु जोशी
यह निर्विवाद सचाई है कि तमाम युद्ध अस्त्रों-शस्त्रों से ही हारे या जीते नहीं जाते, बल्कि जय-पराजय के पलड़े का उठना या गिरना भाषा के सामर्थ्य से भी तय होता है। इसका प्रत्यक्ष चरितार्थ लोकतंत्र के महापर्व की तरह बताए गए लोकसभा के चुनावों में बहुत स्पष्टता के साथ दिखाई दिया। हर दल और हर एक नेता के लिए उसने लगभग युद्ध की शक्ल अख्तियार कर ली। गौर करना दिलचस्प...
More »अब देश की उम्मीदें पूरी करने की चुनौती - परंजॉय गुहा ठाकुरता
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र निर्णायक ढंग से एक नई दिशा में मुड़ गया है। जिस भगवा लहर के उफान के कयास लगाए जा रहे थे, वह भाजपा और उसकी अगुआई वाले एनडीए के पक्ष में सुनामी बनकर उभरी है। देश के उन हिस्सों में भी नरेंद्र मोदी ने नाटकीय ढंग से अपनी पार्टी की तकदीर बदल दी है, जिनमें वह परंपरागत रूप से मजबूत नहीं रही थी। हिंदी पट्टी...
More »जहर की खेती कब तक
मानव स्वास्थ्य : कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से खाने-पीने के सामान हुए जहरीले यूरोप में भारतीय आम पर प्रतिबन्ध ने नीति निर्घारकों को सोचने का एक और मौका दिया है। रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के दुष्प्रभावों के खिलाफ पत्रिका लम्बे समय से मुहिम चलाता रहा है। अनेक शोध और अध्ययन बताते रहे हैं कि खाने-पीने की चीजों में जहर फैलता जा रहा है। सरकार से लेकर आम उपभोक्ता तक सभी को...
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