मैंने 1980 के दशक में जब भारत में आना शुरू किया, तो मैं यहां के आईटी क्षेत्र की बढ़त और उद्यमिता की सोच को देखकर अचंभित हो गया। भारत के एक नियमित पर्यटक के रूप में मैं यह मानता हूं कि देश का भविष्य काफी उज्जवल है। लेकिन एक चीज, जिससे भारत के उज्जवल भविष्य की संभावनाएं और भी बढ़ सकती हैं, वह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अधिक निवेश।...
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खेती की सुध कौन लेगा- धर्मेन्द्रपाल सिंह
जनसत्ता 1 अगस्त, 2014 : मौसम विभाग दावा कर रहा है कि वर्षा सामान्य से केवल दस प्रतिशत कम रहेगी। लेकिन बुआई का कीमती समय निकल जाने की भरपाई कैसे होगी, इसका जवाब उसके पास नहीं है। कृषि मंत्रालय ने एक जून से सत्रह जुलाई के बीच देश भर में धान, दलहन, सोयाबीन, कपास, मूंगफली आदि की बुआई का जो रकबा जारी किया है उसे देख कर लगता है कि इस...
More »देश की जीडीपी के 75 फीसदी के बराबर काला धन है हमारे मुल्क में!- मुकुंद हरि
देश के प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र "द हिन्दू" ने भारत में काले धन के आंकड़े को लेकर दी गई एक खबर देकर पूरे देश को चौंका दिया है. द हिन्दू की पत्रकार पूजा महरा के हवाले से लिखी गई खबर के मुताबिक देश में काले धन की मौजूदगी और उसके आंकड़े की पड़ताल के लिए सरकार की तरफ से जांच करवाई गई थी, जिसकी खुफिया रिपोर्ट के कुछ अंशों को...
More »बाली पैकेज पर भारत की गुगली- प्रमोद जोशी
अपने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को लेकर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से पंगा लेकर क्या मोदी सरकार कोई गलती करने जा रही है? क्या वह वैश्विक बिरादरी में अलग-थलग पड़ने को तैयार है? या सरकार क्या यह साबित करना चाहती है कि वह यूपीए की गलती को दुरुस्त कर रही है? बीते साल संसद में खाद्य सुरक्षा कानून को पास करा कर उसका सारा श्रेय कांग्रेस ने लिया था. अब कुछ...
More »ज्यां द्रेज़: सामाजिक नीति का कथा पुराण
आज शायद ही किसी को वह चिट्ठी याद होगी जिसे सात अगस्त 2013 को नरेन्द्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था. इस चिट्ठी में मोदी ने दुख जताया था कि "खाद्य सुरक्षा का अध्यादेश एक आदमी को दो जून की रोटी भी नहीं देता." खाद्य-सुरक्षा के मामले पर लोकसभा में 27 अगस्त 2013 को बहस हुई तो उसमें भी ऐसे ही मनोभावों का इज़हार हुआ. तब भारतीय जनता पार्टी के...
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