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विषमता का विकास और राजनीति- सुरेश पंडित

जनसत्ता 26 दिसंबर, 2013 : जैसे-जैसे सोलहवीं लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ रही है। कांग्रेस और भाजपा अपने अधिकतम भौतिक और मानवीय संसाधन झोंक कर इस चुनाव को किसी भी तरह जीत लेने के लिए कटिबद्ध दिखाई दे रही हैं। मतदाताओं को रिझाने के लिए उनके पास विकास के अलावा और कोई खास मुद्दा नहीं है और चूंकि इसे पहले भी कई बार आजमाया...

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अजजा, अजा व ओबीसी स्कूलों का लें लाभ

मित्रो, कल्याण विभाग राज्य की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के लिए कार्यक्रम चलाता है. राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की कुल आबादी 38.14 प्रतिशत है. इनमें 11.84 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 26.30 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति हैं. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए अविभाजित बिहार के समय से छात्रवास की सुविधा थी. उस समय अनुसूचित जाति के लिए 257 छात्रवास थे, जिनमें 11520...

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आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले में महाराष्ट्र और गुजरात सबसे अव्वल

विगत आठ सालों में कितने लोगों ने आरटीआई एक्ट के इस्तेमाल के कारण जान गंवाई और कितने लोगों पर जानलेवा हमले हुए ? अगर आप सोचते हैं कि केंद्र सरकार इस प्रश्न का सही-सही उत्तर देगी तो आप भूल कर रहे हैं। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइटस् इनिशिएटिव(सीएचआरआई) द्वारा प्रस्तुत एक दस्तावेज(देखें नीचे दी गई लिंक) के अनुसार केंद्र सरकार के पास आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले की आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।  कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय...

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यौन उत्पीड़न की जमीन- विकास नारायण राय

जनसत्ता 17 दिसंबर, 2013 :  यौनिक हिंसा के चर्चित प्रकरणों पर इन दिनों चल रही राजनीति के बीच हमें स्त्री उत्पीड़न की बुनियादों को नहीं भूलना चाहिए। लगता है जैसे सत्ता-केंद्रों की आपसी खींचतान कहीं असली मुद्दों को हड़प न ले! अन्यथा शीर्ष न्यायालय के जज, अति महत्त्वाकांक्षी राजनीतिक, चर्चित मीडिया संपादकऔर भक्तों-संपत्तियों के धर्मगुरु को लपेटे में लेने वाले ये शर्मनाक प्रकरण, स्त्री विरुद्ध हिंसा के व्यापक लैंगिक संदर्भों...

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भारत का 'चुप्पा' विकास जो किसी को नहीं दिखा

उस वक्त को गुजरे ज़्यादा दिन नहीं हुए जब भारत के सबसे ग़रीब ज़िलों में बुनियादी सुविधाएं बहुत कम और विरल थीं. ज़्यादातर लोग अपने हालात के भरोसे थे. इनमें से कुछ लोगों को भरे-पूरे प्राकृतिक वातावरण का संग-साथ हासिल था और शायद उनकी जिन्दगी में वह आज़ादी और उत्साह भी था जो आज खो गया है. लेकिन अन्य बहुत से लोग भूख, असुरक्षा और शोषण के साये में रहते थे...

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