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विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता

चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...

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मध्य वर्ग का बहुत कुछ दांव पर- लीला फर्नांडिज

भारत का मध्यवर्ग लोकसभा चुनाव के केंद्र में है। नरेंद्र मोदी और भाजपा ने ‘नव मध्यवर्ग’ के तौर पर एक नई राजनीतिक पहचान देकर सुनियोजित ढंग से शहरी मध्यवर्ग को लुभाने की कोशिश की है। इस नई पहचान ने मध्यवर्ग की आकांक्षाओं को नए पंख दिए हैं। कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार से मध्यवर्ग को मिली मायूसी के कारण भाजपा की यह रणनीति काम करती दिख रही है। असमान आर्थिक विकास, बढ़ती...

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कब खत्म होगा पूर्वाचल के विकास का इंतजार - सदानंद शाही

लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में पूर्वी उत्तर प्रदेश में मतदान होना है। देश की सबसे चर्चित लोकसभा सीट बनारस में मतदान इसी दौर में होने जा रहा है। नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल की चुनावी टक्कर ने इस लोकसभा सीट को बेहद दिलचस्प बना दिया है और इसका शोर पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में गूंज रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ क्षेत्रीय दलों की भागीदारी हो...

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इतने ही नैतिक हैं तो पहले सामने क्यों नहीं आए- कुमार प्रशांत

किताबें बोलती हैं, कोई ऐसा कहता है, तो हम इसे भाषा का विन्यास मानकर हंस लेते हैं। लेकिन अभी दो किताबें आई हैं, जो बोल रही हैं। पहली किताब संजय बारू की है, जो बता रही है कि कैसे और किसने बनाया-बिगाड़ा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को-द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर : मेकिंग ऐंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह! फिर दूसरी किताब आई पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख की। यह करती है...

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नमक के नए दारोगा- विकास नारायण राय

जनसत्ता 11 अप्रैल, 2014 : संसाधन घोटालों (कोयला, लोहा, गैस, तेल, रेत, जल, जंगल, जमीन) से बोझिल राजनीतिक वातावरण में, देश के शासन का ईमानदारी से संचालन, 2014 के चुनावी घोषणापत्रों की एक प्रमुख थीम है। तीस हजार करोड़ रुपए चुनाव में दांव पर लगाने वाले राजनीतिकों में होड़ है कि अगला ‘नमक का दारोगा’ कौन बनेगा! नमक जैसे सुलभ पदार्थ को औपनिवेशिक लूट का जरिया बनाए जाने की पृष्ठभूमि...

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