2009 में जब विश्व आर्थिक मंदी की आग में जल रहा था और इसकी तपिश भारत में भी महसूस की जा रही थी, तब भारत ने तीन किस्तों में करीब साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज जारी किया था. हम सरकारी अनुदान हड़पने में किसानों और गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को दोषी ठहराते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि उद्योग और व्यवसाय जगत इनसे कई...
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मौत के आगोश में रोटी की तलाश
बठिंडा [मनीष शर्मा]। वे हर रोज मौत के आगोश में माया की तलाश करते हैं। शहर के पश्चिमी क्षेत्र के 25 परिवार करीब दस मीटर से अधिक गहरी सरहिंद नहर में गहरा गोता लगाकर रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं। उनके हाथ धार्मिक कर्मकांड के तहत लोगों द्वारा नहर में फेंके गए सोने-चांदी के आभूषणों, सिक्कों व अन्य सामान की तलाश करते हैं। पानी में पांच से दस मिनट रहने के बाद कई दफा उनकी...
More »एक साथ कैसे पढ़ेगे अमीर-गरीब बच्चे?
पंचकूला [राजेश मलकानिया]। 'द राइट आफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट 2009' को भले ही केंद्र सरकार ने एक अप्रैल को मंजूरी दे दी है, परतु इसकी सफलता पर सवालिया निशान लगा हुआ है। सरकार द्वारा पारित इस कानून में बीपीएल राशन कार्ड होल्डरों के बच्चों को पढ़ाना प्राइवेट स्कूलों को अनिवार्य कर दिया गया है। देश में सरकारी स्कूलों से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हो गए है। प्राइवेट स्कूल संचालक अपने रोजगार पर...
More »निजाम नया, अंजाम नया
सासाराम [कार्यालय प्रतिनिधि]। जिले में कभी ओझा गुनी बीमारों का इलाज करते थे और सरकारी अस्पताल बदहाली का रोना रोते थे, लेकिन नए निजाम में व्यवस्था के बदले अंदाज ने इस तथ्य को बदल डाला है। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती भीड़ इस बात की गवाह है कि लोगों का विश्वास सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ा है। अंधविश्वासों पर यकीन करने वाले लोग यह समझने लगे हैं कि हर मर्ज की दवा है। पहले...
More »..मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को
गया [प्रभंजय कुमार]। पेट-पीठ दोनों मिलकर एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को..महाकवि निराला की यह पंक्तियां गया जिले के ईट-भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के बीच आज भी चरितार्थ हो रहीं हैं। कंपकंपाती सर्दी हो या तपती दुपहरिया, मेहनतकश मजदूरों को हर वक्त दो जून की रोटी की ही चिंता सताती रहती है। ईटों की पथाई करते-करते इनके जिस्म फौलाद की तरह भले ही कठोर हो चुके हों, लेकिन अभावों...
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