नई दिल्ली। आज जब दुनिया के तमाम अमीर देश आर्थिक संकट से उबरने के रास्ते तलाश रहे हैं, उस वक्त भारत की आर्थिक विकास दर जोरदार रफ्तार पकड़े हुए है। वित्त वर्ष 2009-10 की अंतिम तिमाही में जीडीपी में 8.6 प्रतिशत की वृद्धि इसका साफ सबूत है। इस विकास दर ने दुनिया के तमाम मुल्कों को चौंका दिया है। यही वजह है कि अब कृषि प्रधान मुल्क को गांठने के लिए इन अमीर देशों...
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मुसीबत में हैं बुनकर, बचा लीजिए साहब
भागलपुर। साहब! यहां के बुनकर मुसीबत में हैं। उन्हें बचा लीजिए। काम नहीं मिलने के कारण कुछ बुनकर पलायन कर गए हैं। करीब 40 वर्षों से बिजली संकट झेल रहे हैं। यह आपबीती बुनकरों की है। जो उनके द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुनाई गई। रविवार को नाथनगर स्थित सीटीएस कर्णगढ़ के सभागार में आयोजित बुनकर पंचायत में बुनकरों ने एक-एक कर अपनी व्यथा सूबे के मुखिया को सुनाई। इरशाद अंसारी ने भावनात्मक...
More »किसान मरे नहीं तो क्या करे--- देविंदर शर्मा
भारत में किसानों की आत्महत्या को लेकर छिड़ी बहस के बीच अमरीका में किसानों को अनुदान दिए जाने के बारे में एक दिलचस्प रिपोर्ट आई. 1997 से 2008 के बीच भारत में करीब दो लाख किसानों ने बढ़ते कर्ज के कारण होने वाले अपमान से बचने के लिए अपनी जान देने का आत्मघाती कदम उठाया. इन किसानों को सरकार से किसी प्रकार की सीधी सहायता नहीं मिली थी. अमरीका ने 1995...
More »वार्षिक आर्थिक वृद्धि 7.4 प्रतिशत रही
नई दिल्ली। देश की अर्थव्यवस्था ने सरकार के अनुमानों को भी पीछे छोड़ते हुए गत 31 मार्च को समाप्त वित्तीय वर्ष 2009-10 में 7.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। सरकार ने वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] की वृद्धि 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था, जबकि चालू वित्तीय वर्ष की वृद्धि 8.5 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद की गई है। उम्मीद से अधिक के इस आंकड़े का एक बड़ा श्रेय पिछले वित्त वर्ष...
More »कृषि, कर्ज और महंगाई की चुनौतियां
नई दिल्ली [भारत डोगरा]। जहां एक ओर कृषि नीति के सामने महंगाई व किसानों के कर्ज की ज्वलंत समस्याएं हैं, वहीं दूसरी ओर जलवायु बदलाव के संकट से जूझना भी जरूरी है। वैसे तो पहले भी यह बार-बार अहसास हो रहा था कि न्याय, समता व पर्यावरण हितों की रक्षा और खेती में टिकाऊ प्रगति के लिए कृषि-नीति में बदलाव जरूरी हो गए हैं। अब जब जलवायु बदलाव के कुछ दुष्परिणाम नजर आने लगे हैं और...
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