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देश की 20 प्रतिशत आय केवल 928 घरों में सीमित

एक तरफ तो सरकारें कहती हैं कि वो गरीबी और अमीरी की खाई को पाट देंगी लेकिन हाल ही में आई एक रिपोर्ट इस बात को सिरे से खारिज करती हैं कि भारत में कुछ ऐसा हो भी सकता है। बॉस्टन कंसल्टेंसी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल कमाई का 20 प्रतिशत केवल 928 परिवारों तक ही सीमित हैं। बॉस्टन कस्लटिंग ग्रुप की रिपोर्ट में 'ग्लोबल वेल्थ 2015:विनिंग...

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कुछ राज्य अंडा देने से क्यों मुकर रहे हैं? -- ज्यां द्रेज़

पिछले कुछ सालों से भारत के कई राज्यों ने स्कूलों या आंगनबाड़ी केंद्रों या फिर दोनों जगहों पर मिड डे मील में अंडा परोसना शुरू किया है. यह क़दम सामाजिक नीति के क्षेत्र में हुए बेहतरीन चीज़ों में एक है. भारतीय बच्चे दुनिया के सर्वाधिक कुपोषित बच्चों में शुमार हैं. उन्हें प्रोटीन, विटामिन, आयरन तथा अन्य ज़रूरी पोषक-तत्वों से भरपूर भोजन नहीं मिल पाता. रोज़ाना अंडा खाने से उन्हें पलने-बढ़ने और सोचने-समझने...

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किसान को उसका वेतन आयोग कब- योगेन्द्र यादव

किसान हमें ऐसे याद आता है, जैसे कोई दूर का गरीब रिश्तेदार. हम जानते हैं वह कहीं है, लेकिन मुलाकात कभी खुशी-गमी के मौके पर ही होती है. अंकल जी की मौत का रस्मी अफसोस तो कर लेते हैं, लेकिन यह नहीं पूछते कि तुम्हारी जिंदगी कैसे चल रही है. सवाल नहीं पूछते, चूंकि हम उत्तर नहीं सुनना चाहते. शहरों में रहनेवाले भारत की किसान से मुलाकात किसी बुरी खबर...

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त्रिपुराः एक दिन के बच्चे को 4500 में बेचा- सुबीर भौमिक(बीबीसी)

भारत के त्रिपुरा में एक आदिवासी दंपति के क़थित तौर पर ग़रीबी के कारण अपने नवजात बच्चे को बेचने का मामला सामने आया है. त्रिपुरा के कोवाई सब-डिविज़न के मुंडा बस्ती गाँव के रहने वाले रंजीत तांती ने अपने चौथे बच्चे को उसके जन्म के एक दिन बाद ही मात्र 4500 रुपए में बेच दिया. रंजीत कहते हैं, "जब मेरी बीवी तीन महीने के गर्भ से थी तो हमने डॉक्टर से गर्भपात...

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प्रचंड गरमी पर उबलती बहस- इला भट्ट

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विश्व, विशेष रूप से भारत, गरीबी के मुद्दे पर एक साथ नहीं आया है, जैसा कि यह जलवायु परिवर्तन पर एक साथ आया है. ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं. इसलिए, मैं भारत सरकार से आग्रह करूंगी कि देश का आइएनडीसी तैयार करते समय इसका ध्यान रखे कि क्या हमारे आइएनडीसी गरीबी को कम करने की दृष्टि से कार्बन उत्सजर्न को कम करने के लिए...

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