कहते हैं कि सब कुछ टूट जाये तो कुछ नहीं होता, लेकिन अगर आपके सपने टूट गये, तो आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है. इसलिए सपने देखना बहुत जरूरी है. अपना देश, अपनी जमीन, अपने लोग, अपनी भाषा, अपना माहौल हमारे जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं. लोग अपने भविष्य को लेकर हसीन सपने बुनते हैं और उनको हासिल करने के लिए कोशिश भी करते हैं. लेकिन, क्या आपने...
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आत्महत्या और हत्या के बीच-- रविभूषण
सौ साल पहले (1917) साप्ताहिक पत्र 'प्रताप' के वार्षिक विशेषांक में गणेश शंकर विद्यार्थी ने 'भारतीय किसान' शीर्षक लेख में लार्ड कर्जन को उद्धृत किया था- 'भारतीय किसान राजनीति नहीं जानते, पर उसके बुरे-भले फलों को भोगते हैं...' कर्जन ने किसानों को 'देश की हड्डियां और नसें' कहा था. कृषि उन्नति मेला 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के भाग्य को गांवों और किसानों से, कृषि-क्रांति से जोड़ा था. यह...
More »रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज
सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...
More »कारोबार बनाम आहार-- रमेश कुमार दूबे
वर्ष 2008 की विश्वव्यापी मंदी के बाद शुरू हुई खेती की जमीन के अधिग्रहण की प्रकिया भले ही अब मंद पड़ गई हो लेकिन वैश्विक खाद्य तंत्र पर कब्जा जमाने की प्रवृत्ति में कोई कमी नहीं आई है। छोटी जोतों और स्थानीय खाद्य बाजार की जगह वैश्विक खाद्य आपूर्ति तंत्र स्थापित करने की जो प्रक्रिया दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप-अमेरिका में शुरू हुई थी वह अब तीसरी दुनिया को अपनी...
More »अपने ही समझौते से भाग निकला अमेरिका-- चंद्रभूषण
जब डोनाल्ड ट्रंप पेरिस समझौते से बाहर निकलने के अपने फैसले का एलान कर रहे थे, तो वह असल में, अपनी उन्हीं जलवायु-विरोधी नीतियों को मूर्त रूप दे रहे थे, जिन्हें अमेरिका का राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से वह प्रोत्साहित करते रहे हैं। इस वर्ष मार्च में ही उन्होंने जीवाश्म ईंधन के समर्थन में एक आदेश जारी किया था। यह आदेश न सिर्फ कोयला खनन को बढ़ावा देता है,...
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