खाद्य पदार्थो की लगातार बढ़ती कीमतों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है. इस मूल्य वृद्धि को अकसर मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि देश में खाद्यान्नों के उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है. फिर क्या वजह है खाद्य पदार्थो के मूल्य में होनेवाली वृद्धि की? क्या इसके पीछे जमाखोरों और सट्टेबाजों का हाथ है? आखिर किस...
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देश में गरीबी और आंकड़ों का मकडज़ाल- अनंत विजय काला
उलटबांसी : सरकारी अनुमानों और आंकड़ों के विपरीत देश में गरीबों की वास्तविक संख्या सामने नहीं आती केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले गरीब लोगों की संख्या के आंकड़े जारी किए। इसमें एक अच्छी खबर दिखाई दी। सरकारी विचार-मंच योजना आयोग ने कहा कि पिछले वर्ष में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों की तादाद 269.3 मिलियन,आबादी का 21.9 फीसदी थी। निश्चित...
More »खाद्य सब्सिडी का अंकगणित - अमित तिवारी
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल का बड़ा अहम फैसला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में बड़ा फैसला करते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पास कराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। कड़ी जद्दोजहद के बाद आखिरकार विधेयक पास भी हो गया। लेकिन इसी के साथ आर्थिक संकट से जूझ रहे राजकोष पर पडऩे वाले...
More »गांवों में केवल बूढ़े रह जायेंगे
तकनीक और शहरीकरण पूरी दुनिया को तेजी से बदल रहे हैं. खास कर विकासशील देशों को. अपना देश भी इससे अछूता नहीं है. जैसे-जैसे ‘इंडिया’ 2025 की ओर बढ़ रहा है, हम ‘भारत’ के बारे में भूल रहे हैं. इस श्रृंखला में हम यह आकलन पेश करने की कोशिश करेंगे कि 2025 में कैसी होगी हमारी जिंदगी. पेश है पहली कड़ी. नयी दिल्ली : आज भारत में कस्बे तेजी से शहरों में...
More »दीर्घकालीन राजनीति के तकाजे- पवन कुमार गुप्त
जनसत्ता 23 दिसंबर, 2013 : बहुत समय बाद राजनीति शब्द अपने सही अर्थ के नजदीक आया है। बहुत दिनों बाद आम आदमी में राजनीति से एक उम्मीद जगी है। बहुत-से लोग जो निराशहो गए थे, नए ढंग से सोचने लगे हैं। बात शायद 1944 की है। डॉ सुशीला नैयर ने गांधीजी से पूछा था कि आपने ऐसा क्या किया कि हिंदुस्तान की गिरी-पड़ी जनता उठ खड़ी हुई? गांधीजी का जवाब...
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