हाल ही में संसद द्वारा दिव्यांगों (विकलांगों) के अधिकारों से जुडे़ जिस विधेयक को पारित किया गया है, उसमें दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ खास प्रावधान हैं। अब दिव्यांग बच्चों को छह से 18 साल तक नि:शुल्क शिक्षा मुहैया कराई जाएगी, जबकि मौजूदा प्रावधान में यह आयु सीमा छह से 14 वर्ष है, जो शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सभी वर्ग के बच्चों पर लागू होती है। दिव्यांग बच्चों...
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खेतों का संकट और कुश्ती के अखाड़े-- हरिवंश चतुर्वेदी
ग्लैमर, प्रेम और रोमांस से भरी बॉलीवुड फिल्मों से ऊबे दर्शक अब खेलकूद और खिलाड़ियों की जीवनियों से जुड़ी फिल्मों को ज्यादा पसंद कर रहे है। लगान, चक दे! इंडिया, भाग मिल्खा भाग, पान सिंह तोमर और मैरी कोम जैसी फिल्मों की सफलता से उत्साहित बॉलीवुड निर्माताओं का ध्यान हाल के वर्षों में कुश्ती से जुड़ी कहानियों पर गया है। सलमान खान पश्चिम उत्तर देश की कुश्ती से जुड़ी कहानी...
More »जलवायु: मौसम का पक्ष-विपक्ष-- अखिलेश आर्येंन्दु
धूप-छांव, गरमी-बरसात का आना-जाना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी है। धरती पर जीवन के लिए ये मौसम उतने ही जरूरी हैं जितना की हमें जिंदा रहने के लिए जल और भोजन। यों तो हमारी जलवायु के हिसाब से बारह महीने में तीन मौसम-जाड़ा, गरमी और बरसात प्रमुख हैं। उनका अपना अलग रंग-ढंग है। हर मौसम की अपनी खामी और खूबी होती है। सभी मौसमों में हमें कुछ सुखद अहसास होते...
More »सरकार के लक्ष्य बदलने की वजह-- पवन के वर्मा
विपक्षी नेताओं में नीतीश कुमार संभवत: पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने नोटबंदी के पीछे की मंशा का समर्थन किया. कोई भी सरकार अगर कालाधन और भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कोई कदम उठाती है, तो उसे इसके लिए कम-से-कम संशय का लाभ तो मिलना ही चाहिए. हालांकि, जदयू की तरफ से बराबर यह बात कही जाती रही कि इतने बड़े कदम के लिए तैयारी नाकाफी रही. यह भी कहा...
More »आज तो आजिज हैं सब गरीब! - मृण्ााल पांडे
दु:ख, असहायता और राज-समाज के उत्पीड़न से भारतीय गरीबों का इतनी सदियों से रिश्ता रहा है कि वे अक्सर उसे खामोशी से सहते रहते हैं। पर हमारे यहां जनता की अनसुनी मूक व्यथा को स्वर देने वाले जनकवियों की वाल्मीकि से लेकर बाबा नागार्जुन तक एक लंबी परंपरा भी है, जिसमें नज़ीर अकबराबादी भी आते हैं। मध्यकाल में जब दिल्ली की बादशाहत उजड़ रही थी और जनता जाट, रुहेले, मराठा...
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