लोकतंत्र दुनिया की सर्वोत्तम व्यवस्था नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि शासन व्यवस्था का इससे बेहतर कोई विकल्प भी नहीं है। इसलिए यह व्यवस्था अपनी तमाम खामियों के बावजूद ज्यादातर देशों में चल रही है। भारत ने भी आजादी के बाद संसदीय लोकतंत्र के रास्ते पर चलने का फैसला किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। संसदीय जनतंत्र के प्रति पंडित नेहरू की प्रतिबद्धता पर शायद...
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मौन जुलूसों के नीचे धधकती आग-- प्रमोद मीणा
किसी के कंधे पर बंदूक रख कर निशाना लगाना क्या होता है, इसकी जीवंत बानगी मराठा आंदोलन है। लाखों की संख्या में मराठा महाराष्ट्र की सड़कों पर मौन जलूस निकाल रहे हैं। इसका तात्कालिक कारण बताया जा रहा है अहमदनगर जिले में एक चौदह वर्षीय मराठा लड़की का बलात्कार और हत्या। इस मामले में अभी तक पकड़े गए तीनों आरोपी दलित हैं। कू्ररता की शिकार इस बालिका को न्याय दिलाने...
More »जातीय संरचना, अहिंसा और अंबेडकर-- अजमेर सिंह काजल
आधुनिक काल में ज्योतिबा फुले और बाबा साहेब आंबेडकर ने शासन, सत्ता और संस्कृति के विभिन्न केंद्रों में मौजूद जातीय सैद्धांतिकी को चुनौती देकर ऐतिहासिक कार्य किया। सामाजिक समानता का जो अहसास बाबा साहेब आंबेडकर को संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़ते हुए हुआ, वह हमारे लोकजीवन में कहीं नहीं था। इसलिए शिक्षा प्राप्ति के बाद भारत वापस आने पर उन्होंने इसी लोक जीवन में व्याप्त सदियों पुरानी बीमारियों...
More »विकास का 'गुजरात मॉडल'!-- अनुज लुगुन
गुजरात में कथित गोरक्षकों द्वारा दलित युवाओं को निर्ममता से पीटे जाने के विरोध में हुए दलितों के आंदोलन ने भारतीय सामाजिक संरचना की विसंगति को फिर से उजागर किया है. जिस तरह से दलितों ने मरी हुई गायों को जिला कलेक्टर के दफ्तर के सामने फेंक कर बहिष्कार का प्रदर्शन किया, उसने फिर से बाबा साहेब आंबेडकर के नेतृत्व में हुए महाड़ आंदोलन की याद दिला दी. लाखों की...
More »शिक्षा भी, मजदूरी भी-- कृष्ण कुमार
कहते हैं, शब्दों की अपनी दुनिया होती है। कवि और कहानीकार शब्दों के जरिए हमें किसी और दुनिया में ले जाते हैं। फिर कानून रचने वाले क्यों पीछे रहें? नए बाल मजदूरी कानून का प्रयास कुछ ऐसा ही है। यह कानून कहता है कि छह से चौदह वर्ष के बच्चे स्कूल से घर लौट कर किसी ‘पारिवारिक उद्यम' में हाथ बंटाएं तो इसे मजदूरी नहीं माना जाएगा। इस सुघड़ तर्क...
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