बर्फ का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक आमतौर पर हंसमुख और व्यावहारिक होते हैं। पीटर वदाम्स भी अपवाद नहीं हैं। स्कॉट पोलर रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और कैंब्रिज में ओशन फिजिक्स के इस प्रोफेसर ने अपना पूरा जीवन बर्फ की दुनिया को जानने-समझने में बिताया है, और अपनी इस यात्रा में उन्होंने कई अकल्पनीय बदलाव देखे हैं। 1970 में जब वह पहली बार ध्रुवीय अभियान पर निकले, तब आर्कटिक महासागर...
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लुप्त होती तटीय सुरक्षा पंक्ति--- रमेश कुमार दुबे
इस साल अच्छी मानसूनी बारिश से जहां किसानों के चेहरे खिल उठे हैं वहीं देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इस बाढ़ की वजह अच्छी बारिश उतनी नहीं है जितनी कि विकास की अंधी दौड़ में पानी के कुदरती निकासी तंत्र को भुला दिया जाना। शहरों का विकास नदियों के बाढ़ क्षेत्रों, तालाबों व समीपवर्ती कृषि भूमि की कीमत पर हो रहा है। शहरों के...
More »समझ, संकल्प और इच्छाशक्ति का अकाल : योगेन्द्र यादव
वो गांव गये थे..दावा है कि गांव-गांव यात्रा किये हैं..खेत-खेत, आरी-डरेड़ा सब जगह घूमें। उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि देश सूखे से बेहाल और सरकार दो साल के जश्न में निहाल है। उनका दावा है कि अभी दिल दिमाग जाग्रत है माने नहीं सूखा..भले ही खेत सूख गये हों..किसान बदहाल हो..आत्महत्या कर रहा हो। जी हां मैं बात कर रहा हूं स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव और उनके साथियों की...
More »सुलगता सवाल : क्या मॉनसून की बारिश सूखे की भरपायी कर पायेगी ? सूखते जलागार, घटता जलस्तर, पेयजल और सिंचाई के संकट पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ, नये शोध और आधिकारिक दस्तावेज...जानने के लिए यहां क्लिक करें.
लगातार दो सालों (2014-15 और 2015-16) में सामान्य से क्रमशः 12 और 14 फीसदी कम बारिश के कारण सूखे की मार झेल चुका देश इस साल मानसून से पहले भयावह गर्मी की चपेट में है. चैत के दिन जेठ के दुपहरिया की तरह तपे और देश के कई इलाकों में अप्रैल महीने में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से लेकर 46 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा जो कि सामान्य से...
More »जीवन-मरण का वैश्विक प्रश्न--- निरंकार सिंह
जब ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा शुरू हुई थी, तब इस प्रकार के आकलन की वैज्ञानिकता पर काफी सवाल उठाए गए थे। लेकिन धीरे-धीरे वे सवाल खामोश होते गए। अब पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने तथा इसके फलस्वरूप जलवायु संकट तीव्रतर होने की हकीकत पर मतभेद की गुंजाइश नहीं रह गई है। दुनिया भर के वैज्ञानिक अब यह अनुभव करने लगे हैं कि हम आधुनिक विकास के जिस रास्ते पर चल...
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