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प्राकृतिक नहीं, एक सुनियोजित आपदा है जोशीमठ

डाउन टू अर्थ, 10 फरवरी  हिमालय की ढलानों पर 1,874 मीटर की ऊंचाई पर बसे जोशीमठ शहर के धंसने की शुरुआत हो चुकी है। आशंका इस बात की है कि केवल एक यही शहर ही नहीं, बल्कि आसपास के दूसरे कई गांव या कस्बे भी धीरे-धीरे धरती में समा सकते हैं। लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा रहा है और सरकारें उन सुरक्षित जगहों की तलाश में जी-जान से जुटी...

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जोशीमठ: हिमालय ने दरककर ‘विकास’ का भंडाफोड़ कर दिया है

 द वायर, 22 जनवरी ‘विकास’ का यह कौन-सा मॉडल है, जो जोशीमठ ही नहीं, पूरे हिमालय क्षेत्र में दरार पैदा कर रहा है और इंसान के लिए ख़तरा बन रहा है? सरकारी ‘विकास’ की इस चौड़ी होती दरार को अगर अब भी नज़रअंदाज़ किया गया, तो पूरी मानवता ही इसकी भेंट चढ़ सकती है. बीते सप्ताह जोशीमठ में असुरक्षित घोषित किए गए एक होटल को ध्वस्त करते एसडीआरएफ कर्मचारी. (फोटो: पीटीआई) जोशीमठ आजकल...

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धंसते जोशीमठ से उठते सवाल, सरकारों ने पहाड़ी राज्य के हिसाब से नहीं बनाया विकास मॉडल

डाउन टू अर्थ, 16 जनवरी जोशीमठ में जो आज हो रहा है उसकी पठकथा तो कई सालों से लिखी जा रही थी, ये प्राकृतिक संसाधनों की लूट का खुला प्ररिणाम है। ये नाजुक परिस्थितिकीतंत्र के ऊपर आर्थिक तंत्र को तबज्जो देने का परिणाम है। हम सब जानते हैं कि हिमालय बहुत नाजुक पर्वतश्रृंखला है और इसका परिस्थितिकीतंत्र अतिसंवेदनशील है। हिमालय सम्पूर्ण दक्षिण एशिया के पर्यावरण, समाज और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर...

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ओडिशा के पहाड़ी इलाकों में स्ट्राबेरी उगा रहे हैं आदिवासी किसान

गाँव कनेक्शन, 9 जनवरी एक साल पहले 2021 में इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी(ITDA),ने कोरापुट जिले के चार गाँवों की 30 आदिवासी महिलाओं को पहली बार जिले के डोलियांबा गाँव में पांच एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती करने में मदद की थी। ये महिलाएं तीन स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी)-माँ सुभद्रा, माँ तारिणी और माँ बरुआ- से जुड़ी हुईं थीं। आज ये आदिवासी महिलाएं सफल स्ट्रॉबेरी किसान हैं। इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी,...

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उत्तराखंड: दरक रहे हैं हिमालय के सैकड़ों गांव

मोंगाबे हिंदी, 09 जनवरी उत्तराखंड के उत्तरकाशी से करीब बीस किलोमीटर दूर कठिन पहाड़ी पर बसा है एक छोटा सा गांव: ढासड़ा। कोई 200 लोगों की आबादी वाला ढासड़ा पिछले कई सालों से लगातार दरक रहा है। हालात ऐसे कि मॉनसून या खराब मौसम में यहां लोग रात को अपने घरों में नहीं सोते बल्कि गांव से कुछ किलोमीटर ऊपर पहाड़ी पर छानियां (प्लास्टिक के अस्थायी टैंट) लगा लेते हैं क्योंकि...

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