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हवाओं के रुख को बताता मोदी का भाषण - के. बेनेडिक्‍ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस बार का स्वतंत्रता दिवस का भाषण यूं तो हमेशा की तरह उनकी वक्तृत्व शैली और श्रोताओं से जुड़ने की उनकी क्षमता की ही एक और बानगी था, लेकिन इस बार का भाषण उनके कई समर्थकों को शायद इसलिए निराशाजनक लगा हो, क्योंकि उसमें पर्याप्त सामग्री नहीं थी। कइयों को उसमें महत्वपूर्ण बातों के बजाय दोहराव और पीआर संबंधी कवायद अधिक लगी। अलबत्ता उन्होंने इस अवसर...

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पीछे हटने को तैयार है मोदी सरकार? - परंजॉय गुहा ठाकुरता

यह तो खैर पहले से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि संसद का मानसून सत्र न केवल हंगामाखेज रहेगा, बल्कि वह पूरी तरह से 'धुल" भी सकता है। अब जब ऐसा वस्तुत: होता नजर आ रहा है तो यह किसी के लिए भी अप्रत्याशित नहीं है। सवाल यही था कि क्या इसके बाद मोदी सरकार अपनी नीतियों में बुनियादी बदलाव लाने को मजबूर होगी। संसद में विधायी कार्य ठप...

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सहकारी संघवाद के रास्ते पर- एम के वेणु

एनडीए सरकार ने विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अपने आक्रामक रुख में ठीक ही नरमी लाते हुए कहा है कि प्रस्तावित विधेयक पर चर्चा के लिए बुलाई गई नीति आयोग की बैठक में शामिल सभी मुख्यमंत्रियों के विचारों पर ध्यान दिया जाएगा। गौरतलब है कि इस विधेयक पर पहले ही संसद की काफी ऊर्जा खर्च हो चुकी है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर काफी राजनीतिक आक्रामकता दिखाने (अब तक तीन बार अध्यादेश...

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भूमि अधिग्रहण : संसदीय समिति से ‘जानबूझकर’ गायब रहे अधिकारी

भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर गठित संसद की संयुक्त समिति में भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम दलों के सदस्यों को हैरानी का सामना करना पड़ा। दरअसल, संसद की संयुक्त समिति की बैठक से कई मंत्रालयों के सचिव गायब रहे। इससे बैठक को टालना पड़ा। अब समिति के लिए 27 जुलाई तक रिपोर्ट देना असंभव हो गया। लिहाजा समिति के अध्यक्ष एस एस आहलूवालिया ने रिपोर्ट जमा करने के लिए तीन अगस्त तक...

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न्यूनतम सरकार अधिकतम शोषण- के सी त्यागी

श्रमिकों के शोषण का लंबा इतिहास रहा है। इसके विरुद्ध श्रमिकों ने समय-समय पर आवाज उठाई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून बने। मजदूर संगठित हुए, उन्हें अधिकार मिले, स्वतंत्रता मिली, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ा। इसका असर हमने भारत में भी देखा। लेकिन नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण का दौर परवान चढ़ने के साथ ही श्रमिक फिर शोषण का शिकार हुए। उनका सामाजिक दायरा घटा, अधिकार सिकुड़ते चले गए। इसी...

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