यूरोप की अर्थव्यवस्था दूसरे विश्वयुद्व के बाद पूरी तरह लड़खड़ा गई थी और उस समय उद्योग को मूलमंत्र मानकर विकास की रूपरेखा तैयार की गई। इसी समय विकास की दिशा में दो बड़े परिवर्तन हुए। पहला विकास की परिभाषा गढ़ी गई, जिसका मतलब सीधा-सा यह था कि उद्योग और उससे जुड़े तमाम आगे-पीछे के आयामों को ही विकास मान लिया जाए। दूसरा इसी के बाद भोगवादी सभ्यता का तेजी से...
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भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार: वास्तविक तस्वीर-- अरुण जेटली
सरकार ने 31 दिसंबर 2014 को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनरुद्धार संशोधन कानून, 2013 में उचित मुआवजे के अधिकार और पारदर्शिता के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी किया। आखिरकार इस कानून में संशोधन की क्या जरूरत पड़ी और इन संशोधनों के क्या मायने हैं? इस बात का बार-बार उल्लेख होता रहा है कि भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 पुराना पड़ चुका है और इसमें संशोधन की जरूरत है। 1894...
More »पितृसत्ता की दीवारों में पड़ रही है दरार- सरला माहेश्वरी
हाल में भारत के सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया कि औरत को अपनी संतान के परिचय के साथ उसके पिता का नाम लिखना जरूरी नहीं है. यानी भारत में संतान के नाम के साथ उसके पिता का नाम लिखने की अनिवार्यता खत्म हो रही है. जो स्त्री विवाह के बिना किसी पुरुष के साथ रहती है, उसे भी कानूनन वे सारे अधिकार हासिल हैं, जो एक पत्नी के...
More »जन-गण का 'अधिनायक' कौन? - मृणाल पांडे
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने हाल में राजस्थान विवि के दीक्षांत समारोह के अवसर पर कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर के लिखे राष्ट्रगान 'जन गण मन" के एक शब्द 'अधिनायक" पर आपत्ति जताई है। महामहिम के अनुसार टैगोर ने यह गान तत्कालीन ब्रिटिश राजा जॉर्ज पंचम के भारत आगमन पर 26 दिसंबर, 1911 को आयोजित ऐतिहासिक दिल्ली दरबार में उनकी स्तुति में लिखा था और इसमें 'अधिनायक" विशेषण ब्रिटिश बादशाह का...
More »नारेबाजी तक सीमित रह गए नारे - गोपालकृष्ण गांधी
इधर चेन्नई में कुछ दिनों पहले योगेंद्र यादव को सुनने का सुयोग मिला। एक स्कूल में बोल रहे थे। सुनने वालों में छात्र-छात्राओं के अलावा कई 'बड़े" भी थे, बुजुर्ग भी। हर उम्र के लोगों के लिए उनकी तकरीर वाजिब और अनुकूल थी। योगेंद्र बहुत ही रुचिकर मुद्दे पर बोल रहे थे - इंकलाब पर दोबारा सोच या क्रांति पर पुनर्विचार। उन्होंने कहा कि वे पुणे से आ रहे हैं,...
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