जनसत्ता 30 मई, 2012: एनसीइआरटी की ग्यारहवीं कक्षा की एक पाठ्यपुस्तक के जिस कार्टून पर विवाद खड़ा हुआ, बात महज उस कार्टून तक रहती तो समझ में आती। लेकिन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने एक झटके में सारे कार्टून हटाने की घोषणा कर दी। छह साल पहले बड़ी मेहनत से तैयार कक्षा नौ से बारह तक की राजनीति शास्त्र की सारी पाठ्यपुस्तकों को वापस लेने का एलान कर दिया। बाकी समाज...
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भोजन बर्बाद करने की इज्जत- अरुण कुमार त्रिपाठी
जनसत्ता 2 जुलाई, 2012: भोजन की बरबादी को सामाजिक प्रतिष्ठा माना गया है। उत्तर भारत की एक कहानी इस पाखंड को बखूबी बयान करती है। पिता ने अपने पुत्र को समझाया कि जब भी किसी और के घर आयसु (न्योता) खाने जाओ तो थोड़ा-बहुत भोजन छोड़ दिया करो। बेटे ने पूछा, पिताजी ऐसा क्यों? पिता ने समझाया कि बेटा, वह इज्जत है। आयसु खाते समय बेटे को पिता की हिदायत भूल...
More »जमीन पक रही है- भारत डोगरा
जनसत्ता 23 जून, 2012: अगर हमारे देश में ग्रामीण निर्धन वर्ग और विशेषकर भूमिहीन वर्ग को टिकाऊ तौर पर संतोषजनक आजीविका मिले इसके लिए भूमि-सुधार बहुत जरूरी है। इसके अलावा, अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण द्वारा जिस तरह तेजी से बहुत-से किसानों खासकर आदिवासियों की जमीन लेकर उन्हें भूमिहीन बनाया जा रहा है, उस पर रोक भी लगानी होगी। ऐसे महत्त्वपूर्ण सवालों के न्यायसंगत समाधान के लिए इस वर्ष के आरंभ से एक प्रयास...
More »रियो+20 के लिए राष्ट्रीय व वैश्विक प्राथमिकताएं
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण विश्व के राष्ट्राध्यक्ष, सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि और विकास के मुद्दों से जुड़े विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधी 20 से 22 जून 2012 को ब्राजील की राजधानी रियो दी जेनेरियो में एकत्रित होने जा रहे हैं। इस महासम्मेलन को रियो+20 का नाम दिया है क्योंकि 20 वर्ष पूर्व (1992) भी रियो में 172 सरकारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण और विकास के...
More »कड़वे बादाम : दिल्ली के बादाम उद्योग में मज़दूरों का शोषण
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दूर-दराज़ कोने में बसी हुई, शोर-ग़ुल और चहल-पहल भरी करावलनगर की बस्ती, अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों का एक उभरता हुआ केन्द्र है, जहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर और उनके परिवारों को रोज़गार मिलता है। ये उद्यम किसी भी मानक से छोटे नहीं है। वैश्विक सम्बन्धों की जटिल श्रृंखला में बँधे ये उद्यम, सालभर चालू रहते हैं और हज़ारों मज़दूरों के रोज़गार का स्रोत हैं। कई करोड़...
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