सुनील भाई से जब भी मिला, जहां भी मिला उन्हें एक जैसा ही पाया. वे रंग बदलनेवाले और रंग दिखानेवाले समाजवादी नहीं थे. उन्हें देख कर और याद कर मुक्तिबोध की बौद्धिकों पर व्यंग्य में की कही गयी कविता की पंक्तियां पलट कर कहने का मन करता है. मुक्तिबोध ने आज के बुद्धिजीवियों के लिए कहा था- ‘उदरंभरि अनात्म बन गये, भूतों की शादी में कनात से तन गये, लिया बहुत...
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कालाहांडी में बार-बार चढ़ती काठ की हांडी- सलमान रावी
शहर कैसा होता है? इन्हें नहीं पता। बस कैसी होती है? ये नहीं जानतीं। "शायद शहर में मेम रहती है। मुझे पता नहीं। शहर बहुत बड़ा होगा। वहां बिजली होगी। जगमग-जगमग करता होगा। वहां मेले लगते होंगे। शहर की लड़कियां बहुत ख़ूबसूरत होंगी लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।" ये कल्पना है, कालाहांडी के पेर्गुनी पाड़ा गाँव में रहने वाली ललिता की, जिसने कभी शहर नहीं देखा है। ललिता के सपनों...
More »मेरे गुजरात की कहानी- रीतिका खेड़ा
जब मैं 16 वर्ष की थी, तब मेरी ही उम्र का एक लड़का पटना से मेरे गृहनगर बड़ोदा (गुजरात) आया। शहर को देखकर वह चकाचौंध था। बिजली की निर्बाध आपूर्ति, सड़क की बेहतरीन दशा, रात में भी बिना किसी डर के अकेली दोपहिया वाहन चलाती महिलाएं। गरबा के दौरान, रात भर, आकर्षक बैकलेस चोली में महिलाएं घूम रही थीं। उसे अपनी आंखों पर सहसा विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने...
More »सरोकार, संस्कृति व पर्यावरण की पहरेदार हैं खूंटी की अमिता- राहुल सिंह टूटी
खूंटी के सेफागड़ा गांव की रहने वाली अमिता टूटी से आप 5-10 मिनट किसी भी विषय पर बात कर लें, तो उनकी गहरी संवेदनशीलता का आपको अहसास हो जायेगा. अपने आसपास व आदिवासी समुदाय के लोगों की परेशानियों और उजड़ते जंगल व पर्यावरण के संकट ने उन्हें जंगल बचाने वाली आंदोलनकारी बना दिया. पिछले आठ-नौ सालों से वे जंगल बचाओ आंदोलन से जुड़ कर वन रक्षा व उसके विस्तार के लिए...
More »‘जंगल हम-आपका, नहीं किसी के बाप का ’- अविनाश कुमार चंचल
अवधेश की उम्र का हिसाब रखने के लिए न तो उसके पास मां है और न बाप. शायद इसलिए हमने उससे उसकी उम्र जाननी चाही तो उसने तपाक जवाब दिया, ‘चौथी कक्षा में पढ़ता हूं.’ चौथी कक्षा ही उसकी उम्र को बयां करती है. झट हम भी हिसाब लगाते हैं- दस साल. अवधेश सिंह पनिका दस साल का बच्चा है. आदिवासी परिवार में पैदा हुआ. मध्य भारत के घने जंगलों से घिरे...
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