बेहतर देश के निर्माण के लिए बेहतर समाज का होना पहली शर्त है. किसी भी देश का सतत विकास तभी मुमकिन है, जब वहां के विभिन्न समाज और समुदायों के बीच सौहार्द, शांति व भाईचारा हो. बीता साल 2015 इस लिहाज से कुछ अच्छी यादों के साथ-साथ कई कड़वी यादें भी छोड़ गया है. हाल के दशकों में तेज आर्थिक विकास के बावजूद हमारे समाज में व्याप्त कुछ...
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भारत, नरेंद्र मोदी और गुजरा साल-- आकार पटेल
2015, उम्मीदों से लबालब होने के साथ कुछ हैरान करनेवाला भी वर्ष रहा. भारतीय क्रिकेट टीम जहां विश्व क्रिकेट के क्षितिज पर एक शक्ति के रूप में उभरी, तो शेयर बाजार लगभग वहीं खड़ा है, जहां वह मई 2014 के अंत में था. वैसे एयर इंडिया, ऊर्जा व परिवहन क्षेत्रों में सरकार की नीतियां रंग लायी. बिहार चुनाव में भाजपा की हार के बीच व्यक्तिगत तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी...
More »असल मुद्दों से डगमगाते रहे पूरे साल - मृणाल पांडे
साल 2015 विदा हो रहा है। इस साल भी हमारे नेता, अभिनेता, प्रतिपक्ष और समाज के पुरोधा असली मुद्दों पर कम, प्रतीकों के गिर्द ही अपनी नीतियां और रणनीतियां गढ़ते, झगड़ते रहे। ध्यान का केंद्र चाहे असेंबली चुनाव हों, या महिला सुरक्षा, बिगड़ते पर्यावरण से जुडे बाढ़-सुखाड़ हों अथवा सार्वजनिक परिवहन या विदेश नीति, जिस तरह उन पर संसद के भीतर-बाहर और टीवी पर्दों पर टकराव हुए, तलवारें चलीं, लगा...
More »एक जरूरी कानून
निश्चित ही कानून की नजर में सभी व्यक्ति समान हैं, लेकिन कानून तक सब लोगों की पहुंच एक-सी नहीं होती. अगर कोई व्यक्ति या समूह सामाजिक रूप से कमजोर है, तो उसके इंसाफ पाने की संभावना क्षीण हो जाती है. करीब 25 साल पहले इसी सोच से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम नामक कानून बना था. जातिगत उत्पीड़न का संज्ञान लेने और पीड़ित के प्रति पर्याप्त...
More »मौलिक अधिकार से वंचना क्यों?- पवन के वर्मा
मेरी दृष्टि में जान-बूझ कर बड़ी चालाकी से भारत के संविधान का उल्लंघन किया जा रहा है. संविधान सभा में लंबी बहसों के बाद हमारे राष्ट्र-निर्माताओं ने भारत को सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार देने का निर्णय किया था. इसका अर्थ यह है कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीय नागरिक मतदान के अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं. इसी तरह यह अधिकार भी दिया गया कि योग्य आयु का...
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