बांदा। महुआ के फूल से बनी 'डोभरी' जंगल में बसे जनजातियों के लिए अब सपना हो जाएगी। 'डोभरी' जनजातियों के जीवन का एक प्रमुख सहारा रहा है। कोलुहा जंगल में पीढि़यों से बसे जनजातियों को अब भूखे पेट रात बितानी होगी। वन संपदा पर दबंगों की हुकूमत व सूखे की मार से मुंह का निवाला छिन गया है। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के फतेहगंज क्षेत्र के कोलुहा जंगल में पीढि़यों से बसे जनजातीय...
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कल तक खाने के थे लाले, आज बांट रहे रोटी
भागलपुर, [रूप कुमार]। कहा जाता है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। इसे सार्थक कर दिखाया है गंगा पार के एक किसान पिता-पुत्र ने। पिता-पुत्र आज अपनी एक बीघा जमीन पर नर्सरी के जरिए हर रोज हजार रुपये की कमाई कर रहे हैं। कल तक इस किसान परिवार को रोटी के लाले थे, वहीं आज कई परिवार के बीच रोटी बांट रहे हैं। यशस्वी बने इस किसान का नाम है दीपनारायण...
More »..मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को
गया [प्रभंजय कुमार]। पेट-पीठ दोनों मिलकर एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को..महाकवि निराला की यह पंक्तियां गया जिले के ईट-भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के बीच आज भी चरितार्थ हो रहीं हैं। कंपकंपाती सर्दी हो या तपती दुपहरिया, मेहनतकश मजदूरों को हर वक्त दो जून की रोटी की ही चिंता सताती रहती है। ईटों की पथाई करते-करते इनके जिस्म फौलाद की तरह भले ही कठोर हो चुके हों, लेकिन अभावों...
More »बेरोजगारी निगल गई 350 बरस पुराना गांव
शामली [मुजफ्फरनगर, राजपाल पारवा], मैं हूं गांव कोठड़ा..। एक समय मेरी आबादी 500 के करीब थी। रोजगार के अभाव में दो साल पूर्व मेरा अस्तित्व समाप्त हो गया। शेष रह गया तो सिर्फ 350 वर्षो का इतिहास। ..लेकिन आज भी मेरे बरगद की शीतल छांव में मुसाफिर अपनी थकान मिटाते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पीर आज भी मेरे वजूद का गवाह है। अगर नहीं हैं तो यहां के बाशिंदे। मेरठ-करनाल...
More »छोटी सी उम्र और.. जज्बा बड़ा
नई दिल्ली। छोटी सी उम्र, लेकिन बड़ा जज्बा और काम उससे भी बड़ा। काम इतना बड़ा कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल भी झुक गई और उसे व्यक्तिगत तौर पर मिलने के लिए बुला लिया। बात हो रही है छह साल की बच्ची सरजाना की। पश्चिम बंगाल की रहने वाली इस बच्ची ने बुधवार को राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान अपनी तरफ से 205 रुपये का चेक प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए दान किया। रकम बेशक,...
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