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महंगाई में किसका स्वार्थ है-- अश्वनी कुमार ‘शुकरात'

फिल्म ‘पीपली लाइव' का एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत के माध्यम से एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या महंगाई की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है। गीत के बोल हैं- ‘सइयां तो बहुत कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है।' यानी रात-दिन काम करने के बावजूद कमाई की अपेक्षा महंगाई कई गुना अधिक बढ़ती जा रही है। इसलिए घर में जो जरूरी पदार्थ आने चाहिए, वे...

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दाल का हाल : आत्मनिर्भरता से कितना दूर है देश ?

क्या निकट भविष्य में देश दलहन के मामले में आत्मनिर्भर हो पाएगा जैसा कि केंद्र की नई सरकार के एक साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री ने वादा किया था ?   दलहन के उत्पादन, आयात और उपभोग से संबंधित हाल का एक अध्ययन प्रधानमंत्री के वादे के विपरीत इशारे करता है. मिसाल के लिए अध्ययन के इन तथ्यों पर गौर करें :   साल 2030 तक भारत की आबादी के 1.68 अरब होने के अनुमान हैं...

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आयात नहीं, दाल का उत्पादन बढ़ाएं-- बाबा मायाराम

जब आग लगती है, तभी हम कुआं खोदने के बारे में सोचते हैं। दालों के मामले में भी ऐसा ही हुआ। जब दाल के दाम इतने बढ़ गए कि उसे खाना मुश्किल हो गया, तब जाकर सरकार जागी। अब आनन-फानन में कई फैसले लिए जा रहे हैं। दाल आयात करने का फैसला लिया गया, व्यापारियों के गोदामों और दाल मिलों में छापे मारे गए, स्टॉक की क्षमता तय की गई।...

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पर्यावरण के नजरिए से आहार- रमेश कुमार दुबे

अगर गोमांस (बीफ) के बढ़ते इस्तेमाल को पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए तो इतना विवाद न हो। गहराई से देखा जाए तो आज जलवायु परितर्वन, वैश्विक तापवृद्धि, भुखमरी, नई-नई बीमारियां प्रत्यक्ष रूप से मांसाहार के बढ़ते चलन से जुड़ी हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) के मुताबिक एक मांस-बर्गर तैयार करने में तीन किलोग्राम कार्बन उत्सर्जित होता है। ऐसे में धरती की रक्षा के लिए मांस की बढ़ती...

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गरीब की थाली से गायब होती दाल-- अश्विनी महाजन

अभी महंगे प्याज से त्रस्त जनता को आंशिक राहत मिलने लगी थी कि पिछले लगभग दो महीने से दाल, खासकर अरहर और मूंग की दालों के भाव आसमान छू रहे हैं। बाजार में अरहर की दाल 187-210 रुपये और उड़द की दाल 195 रुपये प्रति किलो बिक रही है। दालों के भाव पिछले कुछ वर्षों से ऊंचे बने हुए हैं और यह आम जन की पहुंच से बाहर होती जा...

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