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इंडिया एक्सक्लूजन रिपोर्ट--- 'वंचित भारत की एक तस्वीर'

क्या कभी आपने सोचा कि देश के शहरों में झुग्गी बस्तियां कितनी हैं, उनमें रहने वाले कौन हैं और झुग्गी-बस्तियों में इनका रहना जीना कैसा है ?अगर नहीं, तो नीचे लिखे तथ्यों पर गौर कीजिए!   देश में तकरीबन साढ़े तैंतीस हजार झुग्गी-बस्तियों होने के अनुमान हैं, महज एक दशक यानी 2001 से 2011 के बीच झुग्गी-बस्तियों में दलित आबादी में 31 फीसद का इजाफा हुआ है. कुछ राज्यों की झुग्गी-बस्तियों की...

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बिहार में जल अधिकार कानून की जरूरत-राजेन्द्र सिंह

बिहार में जल अधिकार कानून की जरूरत है। लोगों के जलाधिकार को जल सुरक्षा में बदला जा सकेगा। यह बात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने जेपी द्वारा स्थापित ग्राम निर्माण मंडल, सर्वोदय आश्रम में जल-संकल्प यात्रा के समापन के अवसर पर कही। आश्रम नवादा जिला के कौआकोल प्रखंड के सेखोदेवरा गांव में स्थित है। यात्रा का आरंभ चंपारण में गांधीजी द्वारा स्थापित भितिहरवा आश्रम से 15 अप्रैल को हुआ था। चंपारण...

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डिफॉल्टरों से 55,000 करोड़ की वसूली की प्रक्रिया शुरू

नई दिल्ली। बाजार नियामक सेबी ने डिफॉल्टरों से 55,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की वसूली प्रक्रिया शुरू की है। यह कार्यवाही मुख्य रूप से धन जुटाने की अवैध स्कीमों पर अंकुश लगाने की उसकी मुहिम से जुड़ी है। अक्टूबर 2013 में जुर्माने और निवेशकों से धोखाधड़ी से जुटाए धन की वसूली को मिली शक्तियों के बाद सेबी ने करीब 900 वसूली प्रक्रियाएं शुरू की हैं। इनमें 200 से ज्यादा पूरी...

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आत्‍महत्‍या करने वालों की जाति और धर्म के आधार पर गणना, सामने आये ये आंकड़े

गृह मंत्रालय के अनुसार, एक हिन्‍दू के मुकाबले किसी ईसाई के आत्‍महत्‍या करने की संभावना डेढ़ गुना ज्‍यादा है। जबकि देश की विभिन्‍न जातियों में से आदिवासी और दलित सबसे ज्‍यादा आत्‍महत्‍या करते हैं। एक आरटीआई के जवाब में यह खुलासा हुआ है कि गृह मंत्रालय ने आत्‍महत्‍याओं की जाति और धर्म के आधार पर अलग गणना कराई थी। 2014 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो (NCRB) ने पहली बार आत्‍महत्‍याओं का...

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सिमटते सहारे-- रवि राठौर

यों कमजोर और कम संख्या वाले समुदायों की सुविधा-असुविधा का खयाल रखने को समाज अपनी प्राथमिकता नहीं मानता, लेकिन हाशिये पर मौजूद लोग भी इसी समाज और व्यवस्था का हिस्सा होते हैं, जिनकी जरूरतें आधुनिकता की चकाचौंध में कई बार दरकिनार कर दी जाती हैं। मौजूदा दौर को मोबाइल क्रांति का युग माना जा रहा है और यह धारणा आम है कि एक गरीब व्यक्ति भी आज मोबाइल का उपयोग...

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