टेलीविजन चैनलों ने किसान को याद किया, ताकि पूरा देश किसान को भूल सके! यही किसान और खेती की त्रासदी है. क्या किसान आंदोलन इस त्रासदी को पलट सकेंगे? असली त्रासदी यह नहीं कि गजेंद्र नाम का एक और किसान अब इस दुनिया में नहीं रहा, उसके मां-बाप ने अपने बुढ़ापे का सहारा खो दिया और बच्चों ने अपना पिता. असली त्रासदी है कि किसानों की आत्महत्या का यही सिलसिला...
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मौत को भी तमाशा बनाने की फितरत - गिरीश्वर मिश्र
भारत के सामाजिक इतिहास में यह घटना अविस्मरणीय रहेगी कि एक राजनीतिक-सामाजिक मंच के आयोजन के दौरान, जिसमें एक प्रदेश का नामचीन मुख्यमंत्री भी शिरकत कर रहा हो, दिनदहाड़े सबकी आंखों के सामने एक किसान पेड़ पर चढ़ता है, ऊंची डाल पर बैठता है, फांसी का फंदा बनाता है और उससे लटककर मौत को गले लगा लेता है। यह घटनाक्रम सभी देख रहे हैं, पर सभा पूर्ववत जारी रहती है।...
More »क्यों खुदकुशी कर रहे हैं किसान- विनय सुल्तान
सारी पार्टियां गजेंद्र सिंह की खुदकुशी पर गमगीन दिखने की होड़ में शामिल हैं। अगर उनके आंसू सच्चे हैं तो वे बाकी किसानों की सुध क्यों नहीं ले रही हैं? महाराष्ट्र में सिर्फ चार महीनों में सैकड़ों किसानों ने अपनी जान ले ली। गजेंद्र सिंह राजस्थान का था। मगर राज्य के किसानों पर छाए संकट का वह अकेला उदाहरण नहीं था। कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ में हाल में तीस से...
More »बाबा साहेब का सपना - सतीश देशपांडे
हमारे समय की विडंबना है कि एक युग-व्यापी समाज चिंतक की भूमिका में डॉ बाबा साहेब आंबेडकर के ‘अच्छे दिन' अब आते लग रहे हैं। उनके एक सौ चौबीसवें जन्मदिन के अवसर पर हम उनकी बढ़ती प्रासंगिकता में यह सांत्वना ढूंढ़ सकते हैं कि हमारे पश्चिम-परस्त, ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी जगत में देर है अंधेर नहीं। आधी सदी की ‘रुकावट' के लिए खेद है, मगर देर-सवेर डॉक्टर साहेब को अपना मुनासिब स्थान...
More »आपदा से निपटने की हो पुख्ता तैयारी - प्रो. संतोष कुमार
लगभग आधे भारत के साथ-साथ हिमालयी राष्ट्र नेपाल और उसके आसपास के देशों में आए भूकंप ने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है। इस क्षेत्र में भूकंप की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन इस बार भूकंप रिक्टर स्केल पर 7.9 प्रतिशत की तीव्रता लेकर आएगा, इसकी किसी ने शायद ही कल्पना की हो। यह एक बड़े खतरे का संकेत भी है। पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों का...
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