वर्ष 1967 में अमेरिकी अर्थशास्त्री विलियम और पॉल पैडॉक ने कहा था कि भारत की बढ़ती आबादी से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती, इन लोगों को केवल गुलाम बनाया जा सकता है। एक लंबे समय तक भारत के बारे में दुनिया का यही नजरिया था। बहरहाल, जैसे ही हमारी जनसंख्या ने एक अरब का आंकड़ा पार किया, एक ऐसा 'डेमोग्राफिक डिविडेंड" उभरकर सामने आया, जो कि दुनिया में किसी के...
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विकास के किफायती मॉडल की ओर - जयंत सिन्हा
सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत प्रगति की मशाल थामने और दुनिया के विकास में मुख्य भागीदार बनने को तैयार है। अगले दशक में सकल आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत लगभग चीन जितनी और अमेरिका से लगभग दोगुनी भागीदारी करने वाला है। भारतीयों के लिए भारत में तैयार उत्पाद और सेवाओं का उपयोग पूरी विकासशील दुनिया में किया जाने वाला है। इसलिए भारत का किफायती विकास मॉडल न सिर्फ मात्रात्मक...
More »युआन के अवमूल्यन से सरकार चिंतित
नई दिल्ली। चीन की मुद्रा के अवमूल्यन ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, यह भारतीय निर्यात को महंगा कर देगा। केंद्र चीन से सस्ते आयात पर अंकुश लगाने के लिए एंटी-डंपिंग ड्यूटी सहित आवश्यक कदम उठा सकता है। शुक्रवार को व्यापार, विकास व संवर्धन परिषद की पहली बैठक के बाद वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि युआन का अवमूल्यन होने से भारत को चीन से...
More »'नेट न्यूट्रैलिटी' है जरूरी, इंटरनेट पर क्यों हो किसी का एकाधिकार?
भारत में इंटरनेट का उपयोग करनेवालों की संख्या पिछले साल ही 35.4 करोड़ से अधिक हो चुकी थी. इसमें करीब 60 फीसदी इसका इस्तेमाल मोबाइल फोन पर करते हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. लेकिन, इंटरनेट तक सभी लोगों की पहुंच समान रूप से रहे या किसी कंपनी को अलग-अलग वेबसाइट्स के लिए अलग-अलग दरें और स्पीड तय करने का एकाधिकार मिले, इस पर इन दिनों जोरदार बहस...
More »सस्ते कच्चे तेल की चुनौती-- रमेश कुमार दुबे
लगातार सस्ता होता कच्चा तेल भले ही तेल आयातक देशों का खजाना भर रहा हो, लेकिन अब इसके कई पर्यावरणीय व आर्थिक दुष्परिणाम निकलने की आशंकाएं हैं. कच्चे तेल की कीमतों के 40 डॉलर प्रति बैरल के मनोवैज्ञानिक स्तर से भी नीचे जाने के बाद अब इसके 20 डॉलर तक गिरने के अनुमान किये जा रहे हैं. पहले कच्चे तेल की कीमतें मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती थीं, लेकिन...
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