जनसत्ता 16 अक्तूबर, 2013 : सर्वोच्च अदालत के दो ताजा लागू फैसलों और केंद्रीय चुनाव आयोग के एक गैर-लागू निर्णय के बाद चुनावी भ्रष्टाचार के दलदल में रसूखदार राजनीतिकों के धंसने का नया युग शुरू हो गया है। न्यायमूर्ति अनंगकुमार पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने दस जुलाई के ऐतिहासिक निर्णय के जरिए यह कील ठोंक दी है कि दो वर्ष या इससे अधिक की सजा पाने वाला...
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कुप्रबंध की संस्कृति- हरिवंश
देश, वाचाल वृत्ति, बौद्धिक विलासिता, पर-उपदेश वगैरह की ‘लचर जीवन संस्कृति’ से नहीं चलता. आज के भारत में सरकार, राजनीति से लेकर समाज स्तर पर यही जीवन संस्कृति है. अमर्त्य सेन जिस ‘आर्ग्यूमेंटेटिव इंडिया’ (बहस में डूबे भारत) की बात करते हैं, उसे जमीन पर देखें-समझें तो बात ज्यादा स्पष्ट और साफ होती है. मूलत: हम बातूनी लोग हैं, बिना कर्म बात-बहस करनेवाले. किसी के बारे में कुछ भी टिप्पणी....
More »किताबें छपवायेगी नहीं, अब खरीदेगी
रांची: सर्व शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों की कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को अब खरीद कर किताबें दी जायेंगी. झारखंड शिक्षा परियोजना 2014-15 में किताबों की छपाई के लिए टेंडर नहीं करेगी. नयी व्यवस्था के तहत सरकार किताबें छपवाने के बदले एनसीइआरटी से खरीद कर बच्चों के बीच नि:शुल्क बंटवायेगी. एनसीइआरटी की किताबों की कीमत व अपने स्तर से छपाई में आनेवाले खर्च का मूल्यांकन करने के बाद...
More »जरूरत रोजगार के अवसर बढ़ाने की- नयन चंदा
अपने देश के 80 करोड़ गरीब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा मुहैया करवाने की शुरुआत भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इस प्रकार की सामाजिक सुरक्षा वाली लोक कल्याणकारी योजना शुरू करना नैतिक रूप से सराहनीय है, लेकिन आर्थिक नजरिए से यह समस्या पैदा करने वाली भी है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए शुरू की गई ऐसी योजना को निरंतर बनाए रखने और उसके लिए पैसा जुटाने के लिए ...
More »लोकतंत्र की बेहतरी के लिए- भारत डोगरा
हाल ही में जब केंद्रीय सूचना आयोग ने देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने की बात की, तो ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। इसकी वजह साफ थी कि कोई भी दल अपनी आय के स्रोतों का खुलासा नहीं करना चाहता है, क्योंकि अगर वे सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आ जाते हैं, तो उन्हें आय-व्यय के ब्योरे सार्वजनिक करने...
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