मध्य वर्ग अपने राज्य के बजट को आमतौर पर नजरंदाज करता है। उसके लिए यह एक सालाना कवायद है, जो उसके रोजमर्रा के जीवन से बहुत ज्यादा वास्ता नहीं रखती। राजनीतिक टिप्पणीकार और मीडिया भी इसे लेकर एक तरह से उदासीन रहते हैं। मगर राज्य के बजट महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये बताते हैं कि सियासी दलों ने चुनाव के दरम्यान जो वादा किया था, उसे वे पूरा कर रहे हैं...
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चुनाव से गायब विकास के मसले - संजय गुप्त
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चार चरण पूरे हो चुके हैं और पांचवें चरण के मतदान की तैयारी है। इस तैयारी के बीच राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज होता जा रहा है। विकास और जनहित के मसलों के साथ शुरू हुआ चुनाव प्रचार एक-दूसरे का उपहास उड़ाने और यहां तक कि बेतुके बयानों तक पहुंच गया। हद तब हो गई जब एक-दूसरे पर निशाना साधने के क्रम...
More »राजनीति के मैदान में काले धन का खेल-- सुधांशु रंजन
चुनाव प्रणाली और काले धन के रिश्ते इन दिनों फिर चर्चा में हैं। राजनीतिक दलों के लिए धन चंदे से आता है। लेकिन न तो चंदा देने वाला और न ही लेने वाला इसे सार्वजनिक करना चाहता है। यह गुपचुप कारोबार ही भारतीय राजनीति को कलुषित करता है। केंद्र सरकार ने राजनीतिक जगत में नकद के खेल को कम करने के लिए एक कदम उठाया है। अब जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,...
More »स्कूलों में असुरक्षित बच्चे-- अरविन्द कुमार सिंह
यह दिल दहला देने वाला कृत्य है कि जयपुर में एक शिक्षक ने दस साल में तकरीबन दो सौ से अधिक बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाया। शिक्षक पर यह भी आरोप है कि वह पीड़ित बच्चों को ब्लैकमेल कर उनसे पैसा भी वसूलता था। स्कूल प्रबंधन की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। जहां उसकी जिम्मेदारी आरोपी शिक्षक के कृत्यों की जानकारी पुलिस को देना था, उसने...
More »किसान-आत्महत्या : सबसे ज्यादा परेशान सीमांत और छोटे किसान !
मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की ! देश में खेती-किसानी का हाल कुछ ऐसा ही है. किसान-आत्महत्या के नये आंकड़े संकेत करते हैं कि बीते 2 सालों में देश में कृषि-संकट और ज्यादा गहरा हुआ है. खेतिहर मजदूर से ज्यादा किसानों की आत्महत्या एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक एक साल के भीतर(2014 से 2015) किसान-आत्महत्या की संख्या में 41.7 फीसद का इजाफा हुआ है जबकि आत्महत्या करने वाले खेतिहर मजदूरों की संख्या में तकरीबन एक...
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