स बार के संसदीय चुनाव में दलित विमर्श हाशिए पर जाता दिख रहा है। एक तो राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में दलित समाज को वंचित श्रेणी में रखकर महिलाओं और अन्य वंचित-शोषित समुदायों के साथ ही प्रस्तुत किया जा रहा है। लिखित और प्रकाशित घोषणापत्रों व प्रचार सामग्रियों में ‘दलित' शब्द की जगह ‘अनुसूचित जाति' और ‘वंचित' जैसे शब्द आने लगे हैं। दलितों के लिए भी अन्य के साथ कुछ...
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बंगाल की खाड़ी से बवंडर-- मृणाल पांडे
मूल मंशा चाहे जो रही हो, केंद्र से आये सीबीआई के जत्थे का यकायक कोलकाता के पुलिस कमिश्नर के घर पर नाटकीय धावा बोल देना बंगाल की खाड़ी से उठा एक बीहड़ बवंडर दिख रहा है. इसने देखते-देखते सारे देश को गिरफ्त में लेकर समूचे विपक्ष को ममता के पक्ष और केंद्र के खिलाफ लामबंद कर दिया है. यदि पता होता कि पांच साल पुराने मामले की जांच...
More »संविधान और जनतंत्र-- मणीन्द्रनाथ ठाकुर
किसी देश का संविधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि समाज में विधि का शासन है. यह एक तरह से आधुनिक विश्व की बड़ी उपलब्धि है. ऐसा नहीं है कि संविधान मात्र के होने से सुशासन होगा ही. लेकिन, इससे शासन की एक सीमा तय होती है. जिन संविधानों का निर्माण लंबे मुक्ति संघर्षों के बाद हुआ है, उनमें संघर्ष की आत्मा बसती है. भारतीय संविधान इसका अच्छा...
More »जरूरी विमर्श के दायरे में 'दलित' - बद्री नारायण
भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हाल में एक एडवाइजरी जारी कर मीडिया व संबंधित संस्थानों से आग्रह किया कि वे दलित सामाजिक समूहों तथा जातियों के लिए दलित के स्थान पर अनुसूचित जाति या एससी शब्द का उपयोग करें। इससे मीडिया, राजनीतिक विश्लेषकों, अकादमिक वर्ग और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच एक विमर्श छिड़ गया। उनकी ओर से यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि इससे क्या हासिल...
More »न्यूनतम मजदूरी का सवाल-- मनींद्र नाथ ठाकुर
बढ़ती महंगाई को देखते हुए देश में क्या न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाया जाना चाहिए? यह सवाल इसलिए भी उठ खड़ा हुआ है, क्योंकि दिल्ली और ओड़िशा के सरकारों ने इसमें महत्वपूर्ण पहल करने का निर्णय लिया है? पूंजीवादी विकास के तीन आधार हैं और उनमें एक संतुलन बनाये रखने का काम राज्य के जिम्मे होता है. पहला आधार है पूंजी, जिसके मालिकों को इस बात के लिए प्रेरित करना...
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