डाउन टू अर्थ, 3 नवम्बर हिमालयी राज्यों में पर्यटन का केंद्र बने पहाड़ी शहरों में बढ़ रही आपदाओं की पड़ताल करती यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ, हिंदी पत्रिका की आवरण कथा की दूसरी कड़ी हैत्र इससे पहले की कड़ी में आपने पढ़ा: आवरण कथा, खतरे में हिल स्टेशन: क्या जोशीमठ के 'सबक' आ सकते हैं काम? माना जाता है कि शिमला शहर 18वीं शताब्दी में एक घना जंगल था। 1864...
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आवरण कथा: राशन से वंचित हैं 15 करोड़ लोग, क्या है सरकार की मंशा
डाउन टू अर्थ, 19 जनवरी देश की राजधानी से लगभग 1,200 किलोमीटर दूर झारखंड के एक गांव में रह रही अनार देवी के एक-एक शब्द पर गौर कीजिए, “मेरे पांच बेटे हैं। सब एक-एक करके बाहर शहरों में चले गए। गांव में रह कर करते भी क्या? भूखे मर जाते! इसलिए उनके जाने का दुख नहीं होता। वे अपने बच्चों को शहरों में किसी तरह पाल रहे हैं और हम यहां...
More »आवरण कथा: क्या कागजों में उग रहे हैं जंगल?
-डाउन टू अर्थ, आवरण कथा की पहली कड़ी में आपने पढ़ा - क्या गायब हो गए हैं 2.59 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल । पढ़ें अगली कड़ी - सबसे बुरी खबर की बात नहीं हुई। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 में कुल 2.587 करोड़ हेक्टेयर रिकॉर्डेड फॉरेस्ट क्षेत्र (राज्य सरकारों के वन विभाग के अधीन वन क्षेत्र) की कहीं बात नहीं है। रिपोर्ट में यह कहीं भी मौजूद नहीं है। इसके...
More »आवरण कथा: कोविड-19 वैक्सीन पर नियंत्रण की लड़ाई
-डाउन टू अर्थ, कोविड-19 महामारी के दौर में जोनस साल्क की याद पोलियो टीके को विकसित करने और उसका पेटेंट न करने वाले साल्क का दर्शन आज के दवा शोधकर्ताओं के लिए अभिशाप है एक थे जोनस साल्क। कुछ लोगों को बताने की जरूरत है कि वह कौन थे। साल्क एक वायरोलॉजिस्ट थे जिन्होंने 1955 आए पोलियो के टीके को सफलतापूर्वक विकसित किया था। यह वह समय था जब पोलियो दुनियाभर की स्वास्थ्य...
More »आवरण कथा/बैंकिंग व्यवस्था/भगोड़ों की मौज, भंवर में फंसे बैंक
-आउटलुक, “एनपीए बढ़ा, बैंकों को गहराते संकट से उबारने के उपाय ऊंट के मुंह में जीरे के सामान, गलतियों से सबक सीखने के प्रति लापरवाही, दिवालिया संहिता से सवालिया घेरे में बैंक, याराना पूंजीवाद और भगोड़ों पर कोई खास अंकुश नहीं” अजब जलवा है भगोड़ों का। 23 मई की रात अचानक खबर आई कि देश के बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले मोस्ट वांटेड भगोड़ों में से एक, मेहुल चोकसी...
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