डाउन टू अर्थ, 19 फरवरी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की अनुशंसा केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। इसका उद्देश्य किसानों को उनकी कृषि उपज के लिए न्यूनतम लाभकारी मूल्य दिलाना, बाजार में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। एमएसपी की शुरुआत 1966-67 में की गई थी, जब भारत में खाद्य पदार्थों की भारी कमी थी। तब सरकार ने घरेलू खाद्यान्न...
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पोषक अनाजों की खेती:- वर्तमान और भविष्य
पोषक अनाजों की अहमियत को समझते हुए भारत सरकार ने खाद्य और कृषि संगठन के सामने एक प्रस्ताव रखा था। नतीजन पूरी दुनिया, वर्ष 2023 को, अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मना रही है।भारत,दुनिया में पोषक अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता है। साल 2020 में विश्व के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 41 फीसदी के आस–पास थी। पढ़िए इस लेख में पोषक अनाजों पर विस्तार से; प्राचीन...
More »जलवायु परिवर्तन का पहला शिकार हो रहे हैं किसान
डाउन टू अर्थ, 28 फरवरी अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चरम अथवा अप्रत्याशित मौसमी घटनाओं से किसानों की आय को नुकसान पहुंचता है। जलवायु परिवर्तन से होने वाली इस आर्थिक क्षति को व्यापक स्वीकार्यता मिल चुकी है। किसान ही जलवायु परिवर्तन को सबसे पहले महसूस करता है जो अंतत: समग्र किसी उत्पादन को प्रभावित करता है और खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान देता है। खाद्य पदार्थों की...
More »नीति आयोग ने सरकार पर पीडीएस के निजीकरण, फ्री राशन का दायरा व सब्सिडी कम करने का दबाव बनाया
द वायर, 10 फरवरी 1 फरवरी को पेश किए गए केंद्रीय बजट में गरीबों के लिए खाद्यान्न सब्सिडी में 63 फीसदी की भारी कटौती की गई. इस खर्च को कम करने के मकसद को हासिल करने के लिए सरकार ने दिसंबर, 2022 में कोविड के समय में शुरू की गई सभी के लिए मुफ्त भोजन की योजना को समाप्त कर दिया और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दूसरी योजनाओं में...
More »आवरण कथा: राशन से वंचित हैं 15 करोड़ लोग, क्या है सरकार की मंशा
डाउन टू अर्थ, 19 जनवरी देश की राजधानी से लगभग 1,200 किलोमीटर दूर झारखंड के एक गांव में रह रही अनार देवी के एक-एक शब्द पर गौर कीजिए, “मेरे पांच बेटे हैं। सब एक-एक करके बाहर शहरों में चले गए। गांव में रह कर करते भी क्या? भूखे मर जाते! इसलिए उनके जाने का दुख नहीं होता। वे अपने बच्चों को शहरों में किसी तरह पाल रहे हैं और हम यहां...
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