-जनपथ, साम्प्रदायिक एकता गांधीजी के लिए महज एक आदर्श नहीं थी, वह उनकी आत्मा में रची बसी थी। साम्प्रदायिक सद्भाव तथा समरसता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की कल्पना इसी बात से की जा सकती है कि अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वे साम्प्रदायिक हिंसा से आहत थे, व्यथित थे, राष्ट्रध्वज फहराने तथा राष्ट्र के नाम संदेश देने के अनिच्छुक थे और नोआखाली के ग्रामों की संकीर्ण गलियों में अपने प्राणों...
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मौत के बाद भी ‘दुधारू’ रह जाती है गाय-- प्रेम कुमार
दुधारू गाय की हत्या की बात सोचना भी पाप है. जो गाय दूध, दही, मिठाइयां, पनीर, खीर से लेकर गोबर, गोमूत्र देने और खेती-किसानी में काम आती हैं, घर के सदस्य जैसी होती हैं, घर की आमदनी होती है उस गाय को कोई मारे तो यह उसकी मूर्खता होगी. सवाल ये है कि फिर ऐसी मूर्खता हो क्यों रही है? गाय पर निर्भर लोग नहीं सोचते गोकशी की बात जो लोग...
More »और भी गम हैं जीएसटी के सिवा - मृणाल पाण्डे
जबर्दस्त सरकारी तामझाम के साथ जीएसटी का आगाज़ हो चुका है। इस वक्त भले ही हर जगह जीएसटी को लेकर चर्चा छिड़ी हो, पर तय है कि देश 2017 द्वारा विमोचित कुछ अन्य बडी चुनौतियों की चर्चा से काफी महीनों तक बरी नहीं हो पायेगा| मसलन स्वयंभू (कम से कम सरकार तो यही कह रही है) गोरक्षकों की देश भर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलाई जा रही अंधी हिंसा की...
More »हत्याओं पर सरकार का रुख-- आकार पटेल
क्या गोरक्षकों द्वारा की जा रही हिंसा, कहने का अर्थ है कि गोमांस के नाम पर भारतीयों की हत्या, भारत की एक समस्या है? अगर ऐसा है, तो इसके हल के लिए क्या किया जा सकता है? वेबसाइट इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार, गोमांस के नाम पर 97 प्रतिशत हिंसा नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई है. केंद्र और महाराष्ट्र, हरियाणा व अन्य दूसरे भाजपा शासित...
More »शराबबंदी से स्वार्थों का संघर्ष-- प्रो. फैजान मुस्तफा
भारतीय संविधान के भाग चार में विहित ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व' का अनुच्छेद 47 कहता है कि ‘राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों के, औषधीय प्रयोजनों के अलावा, उपभोग का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठायेगा.' इस संबंध में उल्लेखनीय यह है कि इस अनुच्छेद में मादक पेयों पर पूरे प्रतिबंध की बात कही गयी है, न कि केवल राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराबबंदी लागू करने की. इसके अलावा, नशाबंदी के...
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