Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | और भी गम हैं जीएसटी के सिवा - मृणाल पाण्डे

और भी गम हैं जीएसटी के सिवा - मृणाल पाण्डे

Share this article Share this article
published Published on Jul 7, 2017   modified Modified on Jul 7, 2017
जबर्दस्‍त सरकारी तामझाम के साथ जीएसटी का आगाज़ हो चुका है। इस वक्‍त भले ही हर जगह जीएसटी को लेकर चर्चा छिड़ी हो, पर तय है कि देश 2017 द्वारा विमोचित कुछ अन्य बडी चुनौतियों की चर्चा से काफी महीनों तक बरी नहीं हो पायेगा| मसलन स्वयंभू (कम से कम सरकार तो यही कह रही है) गोरक्षकों की देश भर में अल्पसंख्यकों के खिलाफ चलाई जा रही अंधी हिंसा की मुहिम की प्रधानमंत्री द्वारा विलंबित भर्त्सना और फिर उसकी भी अनदेखी कर मुख्यमत्रियों, मंत्रियों तथा पुलिस की मूक या मुखर शह से इस मारकाट का जारी रहना| इसी तरह सीमा पर चीन तथा पाकिस्तान के आक्रामक तेवर और देश में इंफोसिस और मैकडोनाल्ड सरीखी कंपनियों की भारी छँटनी से बेरोज़गारी की फैलती घबराहट का विषय भी अचर्चित नहीं रह सकता| सत्तापक्ष द्वारा लांछित, अवहेलित और कई तरह से प्रताडि़त गैर- भक्त मीडिया और सोशल मीडिया इनको बडी सुर्खियाँ बनाते रहेंगे| जन प्रतिरोध का एक छोटा नमूना अभी हम जंतर-मंतर से मुंबई तक देख चुके हैं|

 

 

यह अप्रिय सचाई रेखांकित करना इस लिये ज़रूरी है, कि रायसीना हिल के लुटियननिवासी नये सूरमा चाहे जो कहें, फिलवक्त भारतीय लोकतंत्र के लिये संपूर्ण गोवध बंदी का मुद्दा पशुपालन और खेतिहर समाज के अविभाज्य रिश्ते और साल भर पशु बेचने-खरीदने से निकलती आई पूंजी के प्रवाह से भी जुडा हुआ साबित हो रहा है| ऐसे में जीएसटी का तुरत फुरत लागू करना नोटबंदी की ही तरह पशुओं की खरीदी-बिक्री और मंडियों में नगदी की कमी से पैदा सरदर्द में छोटे कारोबारियों का असंतोष भी जोड सकती है| पहले सरदर्द का स्रोत राजकाज में हो रहे वित्तीय घोटाले भर होते थे, जिनकी बाबत कहा गया था कि नोटबंदी और (अब) जीएसटी नामक दवा का छिडकाव खरपतवार की तरह उनकी जड में मट्ठा डाल देगा| लेकिन नोटबंदी की मार कम नहीं हुई कि जीएसटी की चिंता से बाज़ार परेशान है, जिसके अनेक स्तरीय नये प्रावधानों ने अब तक सिर्फ कराधान विभागों के निगरानी दस्तों, वकीलों, चार्ट्रड अकाउंटेंटों की ही बाँछें खिला रखी हैं|

 

 

दूसरे सरदर्द की घंटी गुजरात के पाटीदार और हरियाणा के जाट बजा रहे हैं| उन्होंने सरकार से आरक्षण पर अपनी मंशा साफ बताने के लिये तीखेपन से जवाब तलब किये हैं| दक्षिण में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ वहाँ इस बासी कढी के पतीले भी फिर खदबदाने लगे हैं| और सीमा पर चीनी-पाकी भाई-भाई बनकर राष्ट्रीय सुरक्षा तले लगातार बारूदी सुरंगें बिछा ही रहे हैं| ठीक है कि पाकिस्तान का लोकतंत्र जीवन रक्षक उपकरणों पर है, यूरो ज़ोन की अर्थव्यवस्था दम तोड रही है| और अमेरिका के नये राष्ट्रपति द्वारा घरेलू हितों को सर्वोपरि रखकर आईटी उद्योग को भारत से घर वापिस लाना शुरू कर दिया गया है। भगवान् न करे, यदि यह तमाम अंधड अगले महीनों में एक साथ विमोचित हो गये तो उनसे झिंझोडा गया वर्ष 2017 भारतीय अर्थव्यवस्था और देश की सुरक्षा के लिये कई अप्रत्याशित चुनौतियाँ सामने ला सकता है, जिनसे गठजोड के नेतृत्व को जूझना ही पडेगा। इस समय कम से कम कुछ सरदर्दों के निवारण के लिये सबसे बडी चुनौती यह नहीं कि पशुव्यापार पर लगाया प्रतिबंध हटे या गोरक्षकों को प्रधानमंत्री फटकारें। हालिया दिनों में साबरमती सभा के भाषण से इसके नमूने सामने आ भी गये हैं। लेकिन उसके बाद भी हिंसा जारी है। लिहाज़ा अब असली चुनौती यह साबित करने की है कि पकडे गये आरोपियों को किस हद तक हर राज्य की सरकार कडे दंड देते हुए भिन्न हित स्वार्थों वाले अनगिनत समुदायों के बीच एक बार फिर समन्वय स्थापित कर सकेगी। साथ ही अभी पूर्व रक्षामंत्री ने यह कहकर चकित किया है कि उनके कार्यकाल का सर्जिकल स्ट्राइक दरअसल मीडिया की आलोचना की प्रतिक्रिया थी। क्या 2017 की मध्यावधि में सरकार लोकतांत्रिक आलोचना की कतई अनिवार्य परीक्षा पर बिना इस हद तक उद्वेलित हुए या मीडिया को जेल भिजवाये साफ-सुथरे तर्कों के साथ खुद को खरा साबित कर पायेगी? पुरानी सरकारों को आज के आका चाहे जितना कोसें, पर भारत का गणतंत्र अगर पिछले सात दशकों से कायम रहा है तो इसलिये कि उसके कायम रहने में सारी शिकायतों और चुनावी हलचलों के बाद भी बहुसंख्यकों, अल्पसंख्यकों और हाशिये के अनेक समुदायों को अपनी आकांक्षाओं और हित स्वार्थों की सुरक्षा की संभावना नज़र आती रही। फिर सोशल मीडिया के युग में आज हर खेल खुला और फर्रुखाबादी बन गया है। सो अब बिना अपराधी को कडा दंड दिये, बिना न्यायिक तराज़ू को सीधा रखे सात समंदर पार की भी कोई सरकार अब मीडिया पर डंडा चलाकर असली घरेलू सचाइयों की उपेक्षा नहीं कर सकती। महाबली ट्रंप के तिलमिलाये ट्वीट भी इस बात गवाह हैं।

 

 

अब भी गदहा मरे कुम्हार का औ' धोबन सत्ती होय, की तर्ज़ में उस विवादित सर्जिकल स्ट्राइक के आलोचक मीडियावालों पर जो भक्तगण गरज बरस रहे हैं, उनको हमारी सलाह है कि वे भी तनिक रुककर याद कर लें कि अनेक मंचों पर व्यक्त सरकार की राय में भारत के सारे मीडियाकर्मी निपट बिके हुए, अपठनीय और धूरि समान हैं। तीन साल लगातार कटु लानत-मलामत के बाद अगर भविष्य में प्रधान सेवक से खुले मीडिया संवाद को प्रधानमंत्री कार्यालय मीडिया को बुलायेगा भी, तो क्या उनका मीडिया के ज्ञात आलोचकों से सदय विनम्र संवाद बन पायेगा?

 

 

इस संदर्भ में हमको बहुत पहले पढी एक रूसी नीति कथा याद आ गई। जाडे की एक ठिठुरन भरी शाम को घर लौट रहे एक किसान ने देखा कि पाले से अकडा एक कबूतर ज़मीन पर तडप रहा है। दयालु किसान ने उसे उठाकर कोट में लपेट लिया और धीरे-धीरे सहलाकर उसकी रुकती साँसों को लौटाया। जब कबूतर ने आँखें खोल दीं, तभी वहाँ से गायों का एक रेवड गुज़रा। उसमें से एक गाय ने तनिक रुककर किसान के आगे गोबर का बडा ढेर लगा दिया। किसान ने कबूतर को तुरत उस गर्मागर्म गोबर की ढेरी में रोपा और राहत की साँस ली कि अब सुबह धूप निकलने तक बेचारा पक्षी बर्फीली हवा और पाले से बचा रहेगा। किसान तो चला गया, पर गोबर की गर्मी से त्राण महसूस करते कबूतर ने ज़ोरों से खूब गुटरगूँ करनी शुरू कर दी। अंधेरे में उसकी ज़ोरदार चहक सुनकर पास से गुज़रता दूसरा किसान रुका और कबूतर को खाने के लिये घर ले गया।

 

 

कहानी तीन नसीहतें देती है। एक : तुमको गोबर में डालने वाला हर जीव तुम्हारा दुश्मन नहीं होता। दो, गोबर से बाहर निकालने वाला हर जीव तुम्हारा दोस्त भी नहीं होता। और तीन : गोबर में आकंठ डूबा जीव कुछ अधिक चहकने से बाज़ आए।

 

- लेखिका वरिष्‍ठ साहित्‍यकार व स्‍तभकार हैं।

 


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-there-are-many-sorrows-other-than-gst-1230075


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close