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एक साथ चलती हैं पानी और संस्कृति, समाज की विफलता की निशानी है पानी का न बचना

डाउन टू अर्थ, 18 अप्रैल  स्वच्छ जल के बिना एक स्वस्थ और सुखद जीवन की कल्पना करना असंभव है। चाहे केंद्र हो या राज्य, ग्रामीण समुदायों तक पानी पहुंचाना हर नई सरकार की प्राथमिकता रही है। हालांकि अनुभव से पता चलता है कि भले ही पानी की सुविधा कई गांवों में “उपलब्ध” हो गई है, लेकिन ऐसे गांवों की संख्या भी बढ़ी है, जहां पानी फिर से “अनुपलब्ध” हो चुका है। दरअसल जलापूर्ति...

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देशभर में नदियों को जीवित ईकाई मान्यता देने की मांग, सभी राजनीतिक पार्टियों को भेजा गया मसौदा

डाउन टू अर्थ, 05 अप्रैल लोकसभा 2024 को चुनावी एजेंडे में पर्यावरण के मुद्दे को प्राथिमकता में लाने के लिए जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय ने सभी राजनीतिक दलों और उनके सांसदों  को अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र में पीपुल्स रिवर प्रोटेक्सन बिल को शामिल करने की मांग उठाई है।  एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जन आन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वय की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि  ‘2024 के लोकसभा चुनावों के...

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नाइट्रोजन प्रदूषण से बढ़ता जल संकट, भारत में पहले ही गंभीर रूप ले चुकी समस्या

डाउन टू अर्थ, 09 फरवरी एक नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते नाइट्रोजन प्रदूषण के चलते अगले 26 वर्षों में दुनिया भर में पानी की भारी किल्लत हो सकती है। वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि 2050 तक वैश्विक स्तर पर नदियों के एक तिहाई उप-बेसिनों को नाइट्रोजन प्रदूषण के चलते साफ पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि पानी की यह कमी...

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जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए स्थानीय पहल अधिक जरूरी क्‍यों?

इंडियास्पेंड, 04 जनवरी झारखंड के लातेहार जिले के नेतरहाट पहाड़ियों में बसे गांव दादीचापर में बिरजिया जनजाति के लगभग 35 परिवार रहते हैं। बिरजिया समुदाय भारत के सबसे दुलर्भ चिन्हित 75 आदिवासी समूहों में से एक है। बादलों से ढकी घुमावदार पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरा हुआ यह क्षेत्र काफी मनोरम दिखता है। दादीचापर गांव, लातेहार शहर से 30 किलोमीटर दूर है और इस गांव तक एक पथरीली और घुमावदार सड़क...

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तम‍िलनाडु: बदलते मौसम का असर, पारंपर‍िक धान की खेती से दूर जा रहे क‍िसान

इण्डियास्पेंड, 20 दिसम्बर  तमिलनाडु के ज‍िला तंजावुर की पंचायत ओझुगासेरी में रहने वाले दिनेश पांडीदुरई और उनके जैसे कई अन्य किसानों ने गर्मी ने लगने वाली धान की क‍िस्‍म सांबा ना लगाने का फैसला किया है। लंबे समय तक ज्‍यादा गर्मी और उसके बाद मानसून सीजन में अच्‍छी बार‍िश ना होने की वजह से इस क्षेत्र का भूजल सूख गया है। पानी की द‍िक्‍कत उन खेतों में भी है जो कोल्लीडैम नदी...

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