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आत्मनिर्भर बन रही हैं केरल की आदिवासी महिलाएँ

बाबा मायाराम, पालक्काड़ “हम जल, जंगल और जंगली जानवरों का संरक्षण करने के साथ-साथ आदिवासियों की आजीविका को भी बचाने की कर रहे हैं। जंगल से हम उतना ही लेते हैं, जितनी जरूरत होती है। जंगली जानवरों के लिये को उनके पसंद के फल, फूल, पत्ते और कंद छोड़ देते हैं; जिससे वे भी जिये और जंगल की जैव-विविधता भी बनी रहे।” यह मंजू वासुदेवन थीं, केरल के त्रिचूर जिले में ‘फॉरेस्ट...

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पढ़ाई के साथ हुनर भी सीखते हैं आदिवासी बच्चे

बाबा मायाराम मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के ककराना गांव में ऐसा आवासीय स्कूल है, जहां न केवल पलायन करनेवाले आदिवासी मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं बल्कि हुनर भी सीखते हैं। यहां उनकी पढ़ाई भिलाली, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में होती है। वे यहां खेती-किसानी से लेकर कढ़ाई, बुनाई, बागवानी और मोबाइल पर वीडियो बनाना सीखते हैं। अब इस स्कूल का एक भील वॉयस नामक यू ट्यूब चैनल भी चल रहा है। पश्चिमी...

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हिमालय पर संकट: आपदाओं पर अंकुश के लिए पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय समुदायों की भागीदारी जरूरी

डाउन टू अर्थ, 11 अक्टूबर हिमालय में बढ़ती आपदाओं पर अंकुश लगाने के लिए ग्राम पंचायतों और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर योजनाएं बनानी होंगी और स्थानीय लोगों के पारंपरिक ज्ञान को आधार बनाना होगा। हिमालय के पर्यावरण पर काम कर रही संस्था हिमधरा पर्यावरण समूह द्वारा ‘हिमालय में आपदा-निर्माण’ नामक रिपोर्ट का सारांश यही है। यह रिपोर्ट 10 अक्टूबर 2023 को जारी की गई। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में भूस्खलन के...

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भगियाओं की नई पीढ़ी ने अपने पेशे से मुंह मोड़ा , कच्छ में विलुप्त हो रहा मवेशियों के इलाज का पारंपरिक ज्ञान

इंडियास्पेंड, 25 सितम्बर कई साल पहले, जब कच्छ सूखे से जूझ रहा था, तो एशिया के सबसे बड़े खुले घास के मैदान बन्नी में सलीम मामा के गांव के लोगों ने और बेहतर जगह की तलाश में पलायन करना शुरू कर दिया। लेकिन सलीम मामा इनमें शामिल नहीं थे। उन्होंने गांव छोड़ने से इंकार कर दिया। सलीम ‘भगिया’ यानी वह एक ऐसे स्थानीय विशेषज्ञ थे, जिनसे बड़े पैमाने पर देहाती समुदाय...

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खबरदार

  खास बात • गंगोत्री ग्लेशियर सालाना ३० मीटर की गति से सिकुड़ रहा है।* • अगर समुद्रतल की ऊंचाई एक मीटर बढ़ती है तो भारत में ७० लाख लोग विस्थापित होंगे।* • पिछले बीस सालों में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी जिवाश्म ईंधन के दहन से हुई है।* • मानवीय क्रियाकलापों के कारण ग्लोबल ग्रीन हाऊस गैस के उत्सर्जन में लगातार बढोत्तरी हो रही है। अगर औद्योगीकरण के पहले के समय से तुलना करें तो मानवीय क्रियाकलापों...

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