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लद्दाख: आम नागरिकों की पहल से कारगर हो रहा वन्यजीव संरक्षण

मोंगाबे हिंदी, 17 नवम्बर लेह में रहने वाले 35 वर्षीय स्टैनज़िन चंबा प्रकृति की खोज में लद्दाख के नुब्रा घाटी में बीते पांच साल से जा रहे हैं। लेह शहर से लगभग 160 किलोमीटर दूर नुब्रा में उन्होंने कई प्रकार के वन्य जीव देखे लेकिन जो जीव उन्हें सबसे अधिक आकर्षित करता है वह है यूरेशियाई लिंक्स। लिंक्स को स्थानीय भाषा में ‘ई’ कहते हैं। “लद्दाख में ज्यादातर लोगों ‘ई’ का नाम...

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पढ़ाई के साथ हुनर भी सीखते हैं आदिवासी बच्चे

बाबा मायाराम मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के ककराना गांव में ऐसा आवासीय स्कूल है, जहां न केवल पलायन करनेवाले आदिवासी मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं बल्कि हुनर भी सीखते हैं। यहां उनकी पढ़ाई भिलाली, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में होती है। वे यहां खेती-किसानी से लेकर कढ़ाई, बुनाई, बागवानी और मोबाइल पर वीडियो बनाना सीखते हैं। अब इस स्कूल का एक भील वॉयस नामक यू ट्यूब चैनल भी चल रहा है। पश्चिमी...

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वन संरक्षण क़ानून में बदलाव: सरकार को मिले 1,200 से अधिक सुझाव

कार्बनकॉपी, 16 जून इस साल मार्च में केंद्र सरकार वन संरक्षण कानून (फॉरेस्ट कंजरवेशन एक्ट) 1980 को संशोधित करने के लिए एक बिल संसद में लाई। मोटे तौर पर देखें तो इस क़ानून के ज़रिए सरकार कुछ तरह की ज़मीन को वर्तमान क़ानून में परिभाषित संरक्षित भूमि के दायरे से बाहर करना चाहती है। इसके साथ वहां पर किए जा सकने वाले कार्यों की सूची को बढ़ाना चाहती है। जैसे वन...

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ग्रेट बैकयार्ड पक्षियों के सर्वे में पाई गई 1,067 प्रजातियां: रिपोर्ट

डाउन टू अर्थ, 01 मार्च अखिल भारतीय सर्वेक्षण, द ग्रेट बैकयार्ड बर्ड काउंट (जीबीबीसी) के दौरान 1,067 पक्षियों की प्रजातियों को देखा गया। यह एक सालभर में किया जाने वाला कार्यक्रम है, जो हर फरवरी में 4 दिनों तक चलता है। जिसमें पक्षियों की गिनती करने और पक्षी संरक्षण में योगदान करने के लिए सभी स्तरों के पक्षी प्रेमियों को शामिल किया जाता है। यह सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को...

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सीबीडी कॉप-15: सबसे कम संरक्षित मूंगे की गहरी चट्टानों की रक्षा करने की तत्काल जरूरत

डाउन टू अर्थ, 13 दिसंबर  जैव विविधता पर कन्वेंशन के पक्षकारों के सम्मेलन की पंद्रहवीं (कॉप 15) बैठक जारी है, जिसमें दुनिया भर के नेता, सरकार के वार्ताकार, वैज्ञानिक और संरक्षणवादी हिस्सा ले रहे हैं। जो सात दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर 2022 तक जारी रहेगी, इसमें शामिल लोगों का उद्देश्य प्रकृति को होने वाले नुकसान को रोकने और उसे पहले जैसा रखने में सहमति बनाना है। इसी क्रम में...

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