न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा इंसाफ के सबसे बड़े ओहदे से अवकाश ग्रहण कर चुके हैं। बतौर प्रधान न्यायाधीश उनका 13 महीने लंबा कार्यकाल तमाम वजहों से लंबे समय तक याद किया जाएगा। भारतीय न्यायपालिका के गौरवपूर्ण इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब समूची न्याय-व्यवस्था आम आदमी की बतकही का हिस्सा बनी और बनती चली गई। इस दौरान कुछ ऐसे सवाल उठे, जिन पर समीक्षकों ने आनन-फानन में फैसला सुना दिया। ऐसा...
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क्यों नहीं सुरक्षित हैं बेटियां --- वी मोहिनी गिरी
सीबीएसई टॉपर रही रेवाड़ी की उस छात्रा की आंखों में निश्चय ही सुनहरे भविष्य के सपने पल रहे होंगे। मगर एक झटके में ही सब कुछ खत्म हो गया। उसे र्दंरदगी का शिकार तब बनाया गया, जब वह पढ़ने जा रही थी। आज देश की कोई बेटी खुद को सुरक्षित नहीं मानती। सब इसी आशंका में जीती हैं कि न जाने कब, किसके साथ कुछ गलत हो जाए। यही वजह...
More »भय नहीं सम्मान बने पुलिस की ताकत-- विभूति नारायण राय
उत्तर प्रदेश के नोएडा में पिछले दिनों पुलिस ने फ्लैग मार्च के रूप में एक शक्ति प्रदर्शन किया। पुलिस को बल मानने वाले मध्य वर्ग को उसकी शक्ति देखकर खुशी होनी चाहिए थी और जैसा कि दावा किया जा रहा था, अपराधियों के मन में इस दृश्य से इतना भय पैदा होना चाहिए था और उन्हें अपनी जमानतें रद्द कराकर जेलों में दाखिल हो जाना चाहिए था। इनमें से कुछ...
More »जीवन चाहिए, मृत्युदंड नहीं- रुचिरा गुप्ता
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की वर्षगांठ पर मुझे एक बात याद आयी. उनकी विधवा, सोनिया गांधी, ने राष्ट्रपति को एक खत में लिखा था कि वे और उनके दोनों बच्चे- राहुल और प्रियंका- राजीव की मृत्यु से अत्यंत पीड़ित हैं, पर वे नहीं चाहते कि राजीव के हत्यारों को मृत्युदंड दिया जाये. सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकर राजीव के हत्यारों को उम्र कैद की सजा दी. इंदिरा गांधी...
More »फंदे में फांसी- विशेष प्रस्तुति(प्रभात खबर)
फांसी की सजा को खत्म करने पर एक बहस दुनियाभर में सालों से चल रही है. भारत में भी मुंबई धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी दिये जाने से पहले 291 प्रतिष्ठित लोगों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख कर फांसी रोकने की मांग की थी. भारत उन देशों में शामिल है, जहां फांसी की सजा पर अमल नहीं के बराबर हो रहा है. हालांकि जघन्यतम अपराध के दोषियों में...
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