हमारा समाज बेशक आज मार्डन हो गया है। समाज के लोग यही कहते है कि हमने आज तक बच्चों में कोई फर्क नहीं किया और हमारे लिए तो बेटा-बेटी एक समान हैं। मगर, वास्तविकता कुछ और ही होती है। लड़कों के मामले में हम बहुत खुले विचार रखते हैं। मगर, लड़की की बात आते ही कहीं न कहीं हमारी सोच थोड़ी सिकुड़ जाती है, इसी के चलते सृष्टि को आगे...
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सिर्फ प्रचार पर ही ख़त्म कर दिया गया ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का 56 फीसदी बजट
नई दिल्ली: देश में घटते लिंग अनुपात को बढ़ाने और लड़कियों को लेकर पिछड़ी सोच में बदलाव लाने के उद्देश्य से शुरू की गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' के तहत पिछले चार सालों में आवंटित हुए कुल फंड का 56 फीसदी से ज्यादा हिस्सा केवल उसके प्रचार में खत्म कर दिया गया. ये जानकारी इसी साल बीते चार जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला एवं बाल...
More »लैंगिक भेदभाव से मर जाती हैं सालाना सवा दो लाख से ज्यादा बेटियां- नई रिपोर्ट
बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के नारे वाले भारत में अनुमान लगाइए कि सिर्फ लैंगिक भेदभाव के कारण सालाना कितनी बच्चियों की जान जाती है ? सिर्फ लड़की होने के कारण जिनसे बड़े चुप्पे ढंग से जिंदगी छीन ली जाती है उनकी तादाद हजार-दस हजार तक सीमित नहीं बल्कि ये आंकड़ा आगे बढ़कर लाखों तक पहुंचता है. प्रतिष्ठित जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर साल लैंगिक भेदभाव के कारण...
More »महिला सशक्तीकरण की बाधित राह-- ज्योति सिडाना
दहला देने वाली इन कुछ घटनाओं पर नजर डालें। चार मार्च, 2018 को बिहार के भोजपुर में दुकान पर सामान लेने गई चार साल की बच्ची के साथ एक युवक ने दुष्कर्म कर उसे मारने की धमकी दी। सात मार्च को कोलकाता में कूड़ा बीनने वाली महिला की तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म किया। एक और घटना में सात और दस साल की दो बहनें ट्यूशन से लौट कर...
More »आधी आबादी का संघर्ष-- डा. अनुज लुगुन
तारीखें कैलेंडर में टंगी चुप्पी साधी चीज नहीं होती हैं, यह तो इतिहास के सबल साजो-सामान और विचार को हमारी आंखों के आगे चस्पा कर उस भार का एहसास दिलाती रहती हैं, जो पूर्वजों के कंधों से होकर हमारे वर्तमान में प्रवेश कर जाती हैं. फर्क इस बात का पड़ता है कि हम यूं ही कैलेंडर के पन्ने पलट देते हैं या उसे पढ़ पाते हैं. ऐसे ही 08 मार्च,...
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