इंडियास्पेंड, 16 नवम्बर “घर चलाना मुश्किल हो गया है। महीने में 12-13 दिन ही काम मिलता है। एक समय था जब महीने भर टेनरियां चलती थी। लेकिन पिछले एक-दो सालों में काफी कुछ बदल गया। बराबर काम ना मिलने की वजह से बच्चों की पढ़ाई रुक गई। सरकार की भी तरफ से कोई मदद नही मिल रही। मालिक से पूछो तो वे कहते हैं कि जब टेनरी चलेगी ही नहीं तो...
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कौन सुनेगा महिला श्रमिकों का दर्द?
डाउन टू अर्थ, 06 अप्रैल पति नागालैंड रहते हैं। एक बेटे को पढ़ाने के लिए शहर में रखी हूं। थोड़ी सी जमीन है। कुछ किसानों की जमीन एक तय राशि पर ली हूं। दिनभर श्रम करने के बाद किसी तरह रोजी-रोटी चलती है. साल में एक बार किसान को पैसे चुकाने पड़ते हैं।" बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर दूर दियारा इलाके की गिन्नू देवी की यह कहानी...
More »नरेगा विरोध का 34वां दिन: राजस्थान के नरेगा मज़दूरों ने साझा की परेशानियां
29 मार्च, नई दिल्ली जंतर-मंतर पर नरेगा मजदूरों के 100 दिवसीय धरने का आज 34वां दिन रहा। धरने में शामिल मज़दूरों ने आज भी अपनी शिकायतों को व्यक्त किया और अपने अधिकारों की मांग को उठाया। राजस्थान से आये नरेगा मज़दूरों ने कई पहलुओं के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से प्रतिक्रिया या शिकायत निवारण की कमी को उजागर करते हुए धरने से पहले अपने संघर्षों को रखा। धरने पर बैठने के दौरान...
More »महामारी के काल में 'महिला कर्मी' और उनका 'मेहनताना'
किसी भी शख्स को रोटी, कपड़ा और मकान सहित अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। अधिकतर लोग पैसे कमाने के लिए रोजी करते हैं। लेकिन क्या आप ऐसी नौकरी करेंगे जहां आपको मजदूरी ही ना मिले? हमने पिछले न्यूज अलर्ट में ऐसे लोगों की पड़ताल की थी, जिन्हें किसी भी प्रकार का वेतन नहीं मिलता था। इस न्यूज़ अलर्ट में, महामारी के समय में,...
More »आवास और आजीविका के विस्थापन के ख़िलाफ़ जंतर-मंतर पर विरोध-प्रदर्शन
जनचौक,07 सितम्बर, बुलडोजर राज बंद करो”, “शहरी गरीबों को अधिकार देना होगा”, “बिना पुनर्वास विस्थापन बंद करो”, “जिस जमीन पर बसे हैं, जो ज़मीन सरकारी है, वो ज़मीन हमारी है!” जैसे नारों के साथ कल सैकड़ों छतविहीन, आश्रयहीन, निर्वासित लोग बुलडोजर राज के ख़िलाफ़ जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए। क्या विडंबना है कि आज जब हम समाज के संपन्न लोग देश की कथित आज़ादी के 75वें साल पर अमृत महोत्सव मना रहे हैं,...
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