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लीची शहद के लिए मशहूर बिहार उत्पादन में आगे, पर दूसरे राज्यों पर निर्भर किसान

मोंगाबे हिंदी, 19 अप्रैल,  बिहार के गया जिले में परैया मरांची गांव के चितरंजन कुमार 18-20 टन शहद का उत्पादन करते हैं। ठीक ऐसे ही, इस ही गाँव के निरंजन प्रसाद भी साल में करीब 20 क्विंटल शहद का उत्पादन करते हैं। लेकिन, इतने उत्पादन के बावजूद भी उन्हें शहद उत्पादन में बहुत ज्यादा फायदा नहीं होता है। चितरंजन और निरंजन दोनों ही इसके लिए प्रदेश में शहद के प्रोसेसिंग प्लांट...

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जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे हैं बिहार के लीची किसान

मोंगाबे हिंदी, 12 जून बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी ब्लॉक में पड़ने वाले मणिका गांव के किसान राजीव रंजन की 10 हेक्टेयर जमीन में लीची का बगीचा लगा है। लेकिन इस साल बारिश नहीं होने और अप्रैल में अधिक गर्मी पड़ने से उनकी फसल को काफी नुकसान हुआ है। मुजफ्फरपुर जिले के हजारों दूसरे किसानों की तरह राजीव रंजन कई दूसरी फसलों की खेती करते हैं, लेकिन लीची उनके परिवार...

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त्रिपुरा की रानी अनानास सहित पूर्वोत्तर के 13 फलों और सब्जियों को मिला जीआई टैग

रूरल वॉयस, 15 मई त्रिपुरा की रानी अनानास सहित पूर्वोत्तर में उगाई जाने वाली 13 फलों और सब्जियों को जीआई टैग मिला है। केंद्रीय उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय के अधीन आने वाले पूर्वोत्तर क्षेत्रीय कृषि विपणन निगम (एनईआरएएमएसी) के इस ऐतिहासिक पहल के तहत पूर्वोत्तर के 800 किसानों को जीआई टैग का इस्तेमाल करने के लिए अधिकृत किया गया है। इन फलों और सब्जियों पर इन किसानों का बौद्धिक संपदा अधिकार...

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होलिका दहन की रात अपने गन्ने की फ़सल क्यों जलाना चाहते हैं रीगा के किसान?

-न्यूजक्लिक, बिहार के सीतामढ़ी जिले के रीगा निवासी किसान रामश्रेष्ठ सिंह कुशवाहा इस रविवार को एक बैठक में अपनी आपबीती सुनाते हुए कह रहे थे कि “मैंने एक बीघा जमीन पर इस बार गन्ने की खेती की है। गन्ना तो बिका नहीं। पांच कट्ठे जमीन पर लगी गन्ने की फसल को मैंने जला दिया है, बाकी बचे 15 कट्ठे जमीन में लगे गन्ने को मैं होलिका दहन की रात जला दूंगा।...

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लॉकडाउन में फंसे मधुमक्खी पालक, भूख और गर्मी से मर रहीं हैं मधुमक्खियां

-गांव कनेक्शन, कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन से हम और आप ही नहीं मधुमक्खियां भी अपने घरों (बॉक्स) में कैद होकर रह गई हैं। ज्यादातर मधुमक्खियों के लिए ये माइग्रेशन (एक जगह से दूसरी जगह जाने) का टाइम था। जिसके चलते करोड़ों मधुमक्खियां मरने के कगार पर पहुंच गई हैं। अगर ये मधुमक्खियां सही समय पर अपने अनुकूल भोजन और जलवायु इलाके में न पहुंची तो तो न सिर्फ भारत में...

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