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भारत की शिक्षा व्यवस्था पर 'असर' ने क्या असर डाला ?

औपचारिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए अधिकांश अभिभावक-गण अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। बच्चों के लिए स्कूल ढूँढते हैं, बस्ता खरीदते हैं, पेन- पेन्सिल, कॉपी-किताब खरीदते हैं, स्कूल की पोशाक खरीदते हैं। तमाम सरकारों की भी यही कोशिश रही कि बच्चे स्कूल जाएँ। सरकारों ने विद्यालयों का निर्माण करवाया, शिक्षकों की नियुक्ति की और ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई। पिछले कई दशकों में ऐसे कई कदम उठाए गए...

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झारखंड में मिड डे मील में प्याज, लहसुन, अंडा बंद, केंद्रीकृत किचन व्यवस्था पर उठे सवाल

डाउन टू अर्थ, 20 दिसम्बर  झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चार प्रखंडों के सभी सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) के लिए लागू केंद्रीकृत किचन व्यवस्था फेल रही है। स्कूली बच्चे इस व्यवस्था से त्रस्त हो गए हैं और पुरानी मध्याह्न भोजन व्यवस्था को फिर से लागू करने की मांग कर रहे हैं। खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने...

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विचार: भारत में पानी मिलने की व्यवस्था में जाति की भूमिका को नज़रअंदाज़ किया जाता है

द थर्ड पोल, 24 नवम्बर  इस साल स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राजस्थान के जालोर जिले में नौ वर्षीय दलित बच्चे इंद्र मेघवाल की उसके ही एक शिक्षक, जो कि ‘उच्च जाति’ से ताल्लुक रखते हैं, ने पीटकर हत्या कर दी। इंद्र मेघवाल की हत्या की वजह यह थी कि उसने अपने उच्च जाति के शिक्षक के लिए रखे बर्तन से पानी पी लिया था। इंद्र मेघवाल की हत्या ऐसी...

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पढ़ाई के साथ हुनर भी सीखते हैं आदिवासी बच्चे

बाबा मायाराम मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के ककराना गांव में ऐसा आवासीय स्कूल है, जहां न केवल पलायन करनेवाले आदिवासी मजदूरों के बच्चे पढ़ते हैं बल्कि हुनर भी सीखते हैं। यहां उनकी पढ़ाई भिलाली, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में होती है। वे यहां खेती-किसानी से लेकर कढ़ाई, बुनाई, बागवानी और मोबाइल पर वीडियो बनाना सीखते हैं। अब इस स्कूल का एक भील वॉयस नामक यू ट्यूब चैनल भी चल रहा है। पश्चिमी...

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उत्तराखंड: जलवायु आपदाओं की कीमत चुका रहे बच्चे, घर और स्कूल लौटने का इंतजार

इंडियास्पेंड, 01 नवम्बर पिछले डेढ़ महीने से राहत शिविर में रही 10 साल की अंशिका चंदेल नाराज हैं कि उनके पास पढ़ने-लिखने के लिए न तो पूरी कॉपी-किताबें हैं, एक मेज-कुर्सी, कक्षा फुलटाइम शिक्षक भी नहीं हैं। खेलने पर डांट पड़ती है। तेज बोलने पर डांट पड़ती है। बोलकर पढ़ने पर डांट पड़ती है। “मैं पहले पांचवीं क्लास में पढ़ती थी। अब ढंग से नहीं पढ़ पाती हूं। मेरे कपड़े, नोटबुक, किताबें,...

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