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देश में बढ़ रही नेट-ज़ीरो इमारतें लेकिन सरकारी नियमों की कमी से रफ्तार धीमी

मोंगाबे हिंदी, 25 अप्रैल कर्नाटक के उडुपी जिले के कुन्दापुरा में बदरिया जुमा 15,000 वर्ग फ़ीट में फैली मस्जिद है। मस्जिद की अन्य लोकप्रिय डिजाइनों के विपरीत इस धार्मिक इमारत का एक अलग रूप है। अंग्रेजी के अक्षर एल (L) के आकार की मस्जिद की इमारत के सबसे ऊपर पर एक पवन चक्की है। छत पर सौर पैनल लगे हैं। पिछले साल इसे इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) की तरफ से...

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एचआईवी दवाओं की कमी संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा

द वायर, 22 सितम्बर एचआईवी रोगियों के इलाज के लिए एंटी-रेट्रोवायरल दवाओं की कमी का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) और अन्य को नोटिस जारी किया. पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि देश में एआरटी दवाओं की खरीद नाकाफी...

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जेंडर

खास बात   साल 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल श्रमशक्ति की तादाद 40 करोड़ है जिसमें 68.37 फीसद पुरुष और 31.63 फीसद महिला कामगार हैं। @ तकरीबन 75.38%  फीसद महिला श्रमशक्ति खेती में लगी है। @ एफएओ के आकलन के मुताबिक विश्वस्तर पर होने वाले कुल खाद्यान्न उत्पादन का 50 फीसद महिलायें उपजाती हैं। # साल 1991 की जनगणना के अनुसार 1981 से 1991 तक पुरुष खेतिहरों की संख्या में 11.67 फीसदी की बढोतरी...

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केंद्र के अपारदर्शी नीलामी नियमों के चलते सरकार के ख़र्च पर दाल मिल मालिकों को हुआ जमकर मुनाफ़ा

-द वायर, केंद्र की मोदी सरकार द्वारा नीलामी प्रक्रिया में बदलाव करने के चलते गरीबों के लिए आवंटित कई टन दाल के जरिये मिल मालिकों की झोली भरी गई है. द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा नीलामी दस्तावेजों की जांच से पता चलता है कि सरकारी खरीद एजेंसी नेफेड, जो कि कल्याणकारी योजनाओं के तहत कच्ची दालों को संसाधित करने के लिए मिल मालिकों को चुनती है, ने साल 2018 से लेकर अब तक...

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महंगाई और महामारी: करोड़ों के हाथ आई गरीबी

-आउटलुक, “कोविड-19 से हर तबका प्रभावित, कोई बिजनेस बेचने तो कोई मेड का काम करने को मजबूर, लेकिन अमीरों की अमीरी भी बढ़ी” अभी एक ही दशक हुआ जब भारतीयों ने अपने खर्च के तौर-तरीके और जीवन शैली में बदलाव लाना शुरू किया था। वे बचत की परंपरागत सोच की जगह खर्च करने पर ज्यादा जोर दे रहे थे। भारतीयों की सोच में आए इस बदलाव पर पश्चिमी देशों का स्पष्ट प्रभाव...

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