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महिला/जेंडर | उत्तराखंडः यहां महिलाएं 2011 से चला रहीं 'जनधन योजना'

उत्तराखंडः यहां महिलाएं 2011 से चला रहीं 'जनधन योजना'

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published Published on Mar 20, 2015   modified Modified on May 7, 2015
2014 में सत्ता में आने के बाद से पीएम मोदी जनधन योजना को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ की महिलाओं ने 'जनधन योजना' की शुरूआत 2011 में कर दी थी।

उत्तरकाशी जिले में सैणी नाकुरी की अहिल्या एवं सुनीता, उत्तरों की सत्यभामा, सुनीता, चीवां की राधिका, डिडसारी की सरस्वती, लौंथरू की पूर्णा देवी और कई नाम हैं जिन्होंने अपनी असाधारण प्रबंध क्षमता का परिचय दिया है।

हर माह 20 रुपए से लेकर 100 रुपए की छोटी बचत के सहारे उन्होंने दो करोड़ रुपये जमा कर लिए हैं। इस राशि से उन्होंने स्वयंसहायता समूह तैयार किया है। इससे जरूरतमंद महिलाओं को कर्ज दिया जाता है जिससे वे स्वावलंबन की राह पर चलती हैं।

ग्रामीण महिलाओं की माइक्रो फाइनेंस की यह मुहिम अब गंगोत्री स्वायत्त सहकारिता संघ का रूप ले चुकी है। नेताला की पूनम बकरी पालन कर रही हैं, तो सिमोल्डी की जसदेई ने चारा प्रजाति एवं सब्जी पौध की नर्सरी तैयार की। नाकुरी की ऊषा ने तीन बार 10-10 हजार का लोन लेकर गांव में ही पति के लिए परचून की दुकान खोली। अब इस दुकान से ही उनके परिवार की आजीविका चल रही है।

पहाड़ में जरूरतें भी पहाड़ जैसी हैं। ज्यादातर घरों के लोग बाहर कमाई करते हैं। घरेलू मोर्चा संभालते हुए महिलाओं को अक्सर गाढ़े वक्त में पैसे के लिए दूसरों के आगे हाथ पसरना पड़ता है।

ऐसे में महिलाओं और बच्चों के उत्थान की दिशा में काम करने वाली संस्था श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम ने इन महिलाओं को छोटी बजट के लिए प्रेरित किया जो इन्हीं के आड़े वक्त में काम आ सके।

2011 में गठित किए गए थे स्वयं सहायता समूह
श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम की पहल पर मई 2011 में भटवाड़ी एवं डुंडा ब्लाक के 140 गांवों में 295 स्वयं सहायता समूह गठित किए गए। इनसे अब तक 4200 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। ये महिलाएं हर माह अपनी सामर्थ्य के अनुसार 20 से 100 रुपये तक जमा करती हैं और आज यह रकम एकत्र होकर दो करोड़ से अधिक हो गई है।

जरूरत के अलावा स्वावलंबन में भी मददगार
कोष में बचत का समूह की महिलाएं अपनी जरूरतों के अलावा अपने स्वावलंबन में भी इस्तेमाल कर रही हैं। कोष से महिलाएं ऋण लेकर पशुपालन, कृषि, बागवानी आदि गतिविधियों को बढ़ावा दे रही हैं।

समूह से जुड़ी पचास फीसदी महिलाओं को 1.62 करोड़ के ऋण बांटे जा चुके हैं, जबकि करीब सत्तर लाख रुपये अभी खजाने में जमा है। ग्रामीण महिलाओं की माइक्रो फाइनेंस की यह मुहिम अब गंगोत्री स्वायत्त सहकारिता संघ का रूप ले चुकी है।

अमूमन किसी बैंक से व्यक्तिगत ऋण की ब्याज दर 14-18 फीसदी तक होती है लेकिन स्वयं सहायता समूह से लिए गए कर्ज की ब्याज दर मामूली है। एक से डेढ़ फीसदी ब्याज लिया जाता है। इसलिए जरूरमंद महिलाओं को समूह से ऋण लेने में संकोच नहीं होता। ज्यादातर महिलाएं समय से लिया गया ऋण लौटा भी देती हैं।

बचत की इस मुहिम का महत्व अब ग्रामीणों को समझ आने लगा है। अब जल्द ही उत्तरकाशी में एक डेयरी और सामुदायिक सुविधा केंद्र की स्थापना का इरादा है।
- विजन देई राणा, अध्यक्ष गंगोत्री स्वायत्त सहकारिता संघ

संस्था की ओर से चार साल पहले शुरू की गई यह मुहिम रंग लाने लगी है। भविष्य में एसबीएमए और हिमोत्थान की ओर से संचालित आजीविका संबंधी योजनाएं सहकारिता संघ के माध्यम से ही धरातल पर उतारी जाएंगी।
- गोपाल थपलियाल, परियोजना प्रबंधक एसबीएमए उत्तरकाशी

(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार अमर उजाला के संबंधित पृष्ठ से)


http://www.dehradun.amarujala.com/feature/city-hulchul-dun/uttarakhand-woman-runs-jan-dhan-yojana-h


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