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क्या है आईपीसीसी की संश्लेषण रिपोर्ट? जानिए प्रमुख बातें, 20 मार्च, 2023 को जारी  

कृपया यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल यानी आईपीसीसी ने एक रिपोर्ट जारी की। जिसे वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी पर अंतिम चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है ये रिपोर्ट? 

छः से सात बरस के अंतराल में आईपीसीसी जलवायु का समग्र अध्ययन कर एक रिपोर्ट जारी करता है। पिछली रिपोर्ट ‘पांचवीं आकलन रिपोर्ट’ के नाम से 2014 में जारी हुई थी। जिसने पेरिस सम्मेलन में लिए गए निर्णयों में महती भूमिका निभाई थी।

छठी आकलन रिपोर्ट बनाने का निर्णय फरवरी 2015 में लिया गया। इसके तहत तीन प्रमुख रिपोर्ट्स जारी की गई हैं। पहली, “क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस” अगस्त 2021 को जारी, दूसरी, “क्लाइमेट चेंज 2022: इंपैक्ट, एडॉप्शन एंड वल्नरेबिलिटी” फरवरी 2022 में जारी, तीसरी रिपोर्ट “क्लाइमेट चेंज 2022: मिटिगेशन ऑफ क्लाइमेट चेंज” शीर्षक के साथ अप्रैल 2022 में जारी की गई थी।

इन तीनों रिपोर्ट्स का संश्लेषित रूप  “एआर6 संश्लेषित रिपोर्ट” के नाम से 20 मार्च, 2023 को जारी किया गया।

इन तीन प्रमुख रिपोर्ट्स के अलावा छठी आकलन रिपोर्ट के अंतर्गत कुछ खास मुद्दे को संबोधित करने वाली रिपोर्ट्स जारी की थीं; जिन्हें आप यहां, यहां, यहां और यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बातें–

इस रपट में कोई नई बात नहीं कही है, पुराने अनुसंधानों को एक साथ रखा है। फिर सवाल ये उठता है कि इस रपट की क्या ज़रूरत आन पड़ी? तीनों रिपोर्ट्स लंबी हैं। नीति–निर्माताओं के बीच विमर्श का हिस्सा बनाने के लिए इस सारांश को पेश किया गया है।

  • लगातार ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन किया जा रहा है, जिससे तापमान भी निरंतर बढ़ रहा है। 2011 से 2020 के बीच का वैश्विक तापमान 1850 से 1900 के औसत तापमान से 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया है।
  • तापमान में बढ़ोतरी के पीछे का कारण– जीवन शैली, भूमि का उपयोग, जीवाश्म ईंधन का प्रयोग और उपभोग का पैटर्न। यहां क्लिक करें।
  • पेरिस संधि के तहत हरेक राष्ट्र ने अपने लिए लक्ष्यों का निर्धारण किया था ताकि जलवायु परिवर्तन को रोका जा सके। अगर इन लक्ष्यों पर खरा उतरने की कोशिश नहीं की गई, तो 21वीं सदी के अंत तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के अंदर रखने के लक्ष्य की संभावना 50 फीसद बची हुई है, वो खत्म हो जाएगी।
  • साथ ही रिपोर्ट में इस बात की ओर भी ध्यान खिंचा गया है कि अगर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाए तब दुनिया पर क्या असर पड़ेगा।
  • अगर मौजूदा गति से काम चलता रहा तो वर्ष 2040 से पहले ही 1.5 सेल्सियस की सीमा पार हो जाएगी।
  • शमन (मिटिगेशन) के लिए ज़रूरी वित्त नहीं पहुंच पा रहा है।
  • हिम मंडलों के पिघलने की गति में तेजी आएगी।
  • महासागरों की कार्बन भंडारण करने की शक्ति में कमी आएगी।

सिफारिशें-

  • दुनियाभर के देशों को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करनी होगी क्योंकि जीवाश्म ईंधन जलवायु संकट का प्रमुख कारण है।
  • कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना होगा. ये कमी जीवाश्म ईंधन विकल्पों को अपनाने, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) विद्युत संयंत्रोंको नई तकनीकों से जोड़ने के बाद आएगी।
  • नेट-जीरो, जलवायु-परिवर्तन संबंधी भविष्य को संरक्षित करने के लिये अपनाने की ज़रूरत है।



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