Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | क्या श्रमिकों का फैक्ट्रियों से खेतों में बड़ी संख्या में पलायन ‘विकास’ की गाड़ी का उल्टी दिशा में जाना है

क्या श्रमिकों का फैक्ट्रियों से खेतों में बड़ी संख्या में पलायन ‘विकास’ की गाड़ी का उल्टी दिशा में जाना है

Share this article Share this article
published Published on Aug 18, 2021   modified Modified on Aug 19, 2021

-द वायर,

2018-19 में कुल रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 42.5 फीसदी से 2019-20 में नाटकीय ढंग से बढ़कर 45.6 फ
सदी
 हो गई. कुल रोजगार में कृषि की भागीदारी में यह इजाफा भारतीय अर्थव्यवस्था के एक चिंताजनक पहलू को दिखाता है. यह बढ़ोतरी उद्योग या सेवा क्षेत्र से कृषि में श्रमिकों की एक असामान्य बड़ी गतिशीलता की संकेतक हो सकती है.

वास्तविक रोजगार की स्थिति के लिए भिन्न-भिन्न मापकों- काफी सख्त से ज्यादा उदार तक- का इस्तेमाल करने वाले विश्वसनीय निजी और सरकारी सर्वेक्षणों में भारत में रोजगार में लगे लोगों की कुल संख्या 40 करोड़ से 47 करोड़ के बीच है. ऐसे में एक साल में कृषि रोजगार में तीन प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी का मतलब है कि करीब 1.2 से 1.3 करोड़ लोग एक साल में उद्योग या सेवा क्षेत्र में रोजगार से निकलकर वापस कम आय वाली कृषि में लग गए हैं.

कामगारों की इतनी बड़ी संख्या फैक्ट्रियों से निकलकर ग्रामीण खेतों में क्यों वापस जा रही है, इसका गहन विश्लेषण और इसके अनुरूप नीति में सुधार किया जाना जरूरी है.

हो सकता है वैश्विक महामारी ने इस प्रक्रिया की गति को तेज करने का काम किया हो, लेकिन इस बात में काफी कम संदेह है कि मोदी की आर्थिक नीतियों ने श्रम के उल्टे प्रवाह के लिए पहले से उपजाऊ जमीन तैयार कर दी थी, जब अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण और डिजिटलीकरण के प्रमुख नीतिगत लक्ष्यों को नोटबंदी और जीएसटी के बेहद खराब क्रियान्वयन की आपदाओं का सामना करना पड़ा था.

ऐसा लगता है कि ‘विकास’ की रेलगाड़ी उल्टी दिशा में चलने लगी है. और यह मत भूलिए कुल रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी में यह बड़ी वृद्धि एक ऐसे समय में आई है, जब खुद बेरोजगारी ही कई दशकों के सबसे ऊंचे स्तर पर है और महिलाएं भी रिकॉर्ड संख्या में औपचारिक श्रमबल से बाहर हुई हैं.

यह दिखलाता है कि ग्रामीण रोजगार की तरफ आए इस घुमाव का संबंध एक संकट से है. इसके अलावा यह उस समय हो रहा है, जब ज्यादा आय समर्थन की मांग करते हुए किसानों का आंदोलन अपने चरम पर है.

ऐतिहासिक तौर पर सतत आर्थिक विकास के किसी भी दौर के साथ-साथ गरीबी में कमी आती है और श्रमबल कृषि से उद्योगों और सेवाओं की तरफ गतिशील होता है. इसके साथ ही शहरीकरण में वृद्धि और नगरीय मध्यवर्ग का आकार भी बढ़ता है, जैसा कि विकसित और तेजी से विकासशील देशों में देखा गया है.

भारत में इस प्रक्रिया में 2005-06 से 2011-12 के बीच के तेज आर्थिक विकास के वर्षों में काफी तेजी देखी गई, जब 3.7 करोड़ कृषि कामगारों ने मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन आदि गैर-कृषि रोजगारों की तरफ रुख कर लिया.

श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि इस अवधि के दौरान कृषि से गैर-कृषि रोजगार की तरफ एक अभूतपूर्व पलायन देखा गया. उनका कहना है, ‘2012 के बाद से लेकर 2018 तक यह रुझान बना रहा, लेकिन इसकी रफ्तार काफी घट गई. फिर भी इस दौरान इसकी धारा कभी उलटी नहीं बही. लेकिन पहली बार, हम श्रम-गतिशीलता की इस धारा को उलटा बहते हुए देख रहे हैं जब कामगार फैक्ट्रियों से खेतों की ओर रुख कर रहे हैं.’

मेहरोत्रा के मुताबिक, कृषि से गैर कृषि क्षेत्रों की तरफ वास्तविक बड़ा घुमाव 2004 के बाद आया और इसमें 2012 तक तेजी आती रही और इसके बाद यह प्रक्रिया धीमी गति से चलती रही.’

दिलचस्प यह है कि 2005-06 से 2015-16 तक की अवधि में भारत में बहुआयामी गरीबी में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई जबकि 27 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले. यह दुनिया में कहीं भी गरीबी में आने वाली सबसे बड़ी गिरावट थी. यह अध्ययन ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी और ह्यूमन डेवेलपमेंट इनिशिएटिव (ओपीएचआई) और यूएनडीपी द्वारा विकसति सूचकांक पर आधारित था.

पिछले साल ऑक्सफोर्ड सेंटर ने यह चेतावनी दी थी कि वैश्विक महामारी के कारण इस तरक्की पर खतरा मंडराने लगा है.

वैश्विक महामारी ने वास्तव में 2016-17 के बाद दिखाई देने वाली विकास और रोजगार की समस्याओं को और बढ़ाने का काम किया है. इस संदर्भ में सभी बहसें घूम-फिरकर नोटबंदी और एक बेहद ख़राब तरीके से लागू किए गए जीएसटी पर लौट आती हैं.

ये दोनों अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के विनाश और किसानों के बीच फैक्ट्रियों से निकलकर खेतों की ओर रुख करने की बढ़ती प्रवृत्ति के हिसाब से महत्वपूर्ण मील का पत्थर हैं. इसकी पुष्टि मनरेगा के तहत रोजगार की मांग में भारी वृद्धि से भी होती है.

हालात इतने खराब हैं कि मोदी खुद को अपने गांवों में लौट गए करोड़ों बेरोजगार प्रवासी मजदूरों के लिए ‘अन्न महोत्सव’ के प्र
ायोजक
 के तौर पर पेश कर रहे हैं. मुझे 2014 में प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया वह जोरदार नीतिगत बयान याद आता है- वे गरीबों को कांग्रेस की खैराती अर्थव्यवस्था से बाहर निकालना और उन्हें उनके पांवों पर खड़ा करने के लिए आर्थिक तौर पर सशक्त बनाना चाहते थे. अन्न महोत्सव का आयोजन उस उद्देश्य को मजाक बना देता है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


एमके वेणु, http://thewirehindi.com/182581/modinomic-s-legacy-labour-traffic-factories-to-farms/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close