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न्यूज क्लिपिंग्स् | सार्वजनिक निवेश के बल पर टिकी विकास की रणनीति को वैश्विक मुद्रास्फीति से ख़तरा है

सार्वजनिक निवेश के बल पर टिकी विकास की रणनीति को वैश्विक मुद्रास्फीति से ख़तरा है

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published Published on Feb 5, 2022   modified Modified on Feb 10, 2022

-द वायर,

वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट को पिछले आठ वर्षों से ठहर से गए निजी क्षेत्र के निवेश में तेजी लाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आखिरी कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है.

प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का कार्यकाल लगभग एक दशक पूरा करने की ओर बढ़ रहा है. उन्हें यह चिंता अवश्य सता रही होगी कि आय, निजी निवेश, रोजगार, बचत ओर पूंजी निर्माण जैसे विभिन्न अहम पैमानों पर निराशाजनक वृद्धि को उनकी विरासत के तौर पर लिए याद किया जाएगा. 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत होने के बाद से इन मोर्चों पर किसी भी प्रधानमंत्री का रिपोर्ट कार्ड इतना फीका नहीं रहा है.

ज्यादा राजस्व संग्रह और सरकार के परिसंपत्ति मौद्रिकरण (एसेट मॉनेटाइजेशन) कार्यक्रम के बल पर नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनईपी) कार्यक्रम के तहत बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश में बड़ी वृद्धि करना इस बजट का मुख्य लक्ष्य है.

नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन प्रोग्राम के तहत कुछ खास परियोजनाओं की पहचान की गई है, जिनमें 5 सालों तक प्रतिवर्ष 20 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाना है. निर्मला सीतारमण ने सरकार द्वारा विशाल पूंजी निवेश के द्वारा ‘निजी निवेश को प्रोत्साहित करने’ की जो बात की, उसका सार यही है.

यह विकास और रोजगार की बंद पड़ी गाड़ी को आगे बढ़ाने की केंद्रीय रणनीति है. लेकिन क्या यह कामयाब होगी?

इस बजट में बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) के लिए आवंटन को 35 फीसदी की बढ़ाते हुए इसे 2022-23 के लिए 7.5 लाख करोड़ कर दिया गया है. यह उम्मीद की गई है कि राज्य सरकारें पीएम गति शक्ति परियोजना, जिसका मकसद एनईपी के तहत चिह्नित नए इंफ्रा प्रोजेक्ट्स हेतु फंड जुटाने के लिए सरकारी परिसंपत्तियों का मौद्रिकरण करना है, के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर फंडिंग में अपने हिस्से का योगदान करेंगी. लेकिन सवाल उठता है कि सरकार द्वारा सार्वजनिक निवेश में बड़ा इजाफा किस हद तक निजी निवेशक को प्रोत्साहित कर पाएगा?

बढ़ रही वैश्विक मुद्रास्फीति, जो तीस सालों के सर्वाधिक स्तर पर है, और विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा तरलता (लिक्विडिटी) में कमी लाने और 2023 में ब्याज दरों को तेजी से बढ़ाने की पहल, इस रणनीति की राह में सर्वप्रमुख जोखिम है.

अमेरिकी फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति से मुकाबला करने के लिए ब्याज दरों को तीन से चार गुना तक बढ़ाने के लिए तैयार है. इस कदम का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर विकास और रोजगार पर पड़ सकता है. भारत इस व्यापक वैश्विक रुझान से अलग-थलग नहीं रह सकता है और फिलहाल सरकार बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर जीडीपी और रोजगार बढ़ाने का जो अनुमान लगा रही है, उस पर वैश्विक तरलता की स्थिति और मुद्रास्फीति का प्रभाव पड़ना तय है.

यह ध्यान में रखना चाहिए कि बुनियादी ढांचे के लिए चिह्नित 20 लाख करोड़ रुपये का सिर्फ आधा हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारों से आना है. बाकी पैसा निजी क्षेत्र से आना है, जिसका प्रमुख स्रोत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होगा.

भारत को अपने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के लिए पैसे जुटाने के लिए दीर्घावधिक पेंशन फंडों और संप्रभु (सोवेरेन) फंड से प्रति वर्ष करीब 100 अरब डॉलर की जरूरत पड़ सकती है. एक बेहद ऊंचे स्तर पर वाली वैश्विक मुद्रास्फीति वाले वर्ष में जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व अपनी ब्याज दरों को बढ़ा रहा होगा और इसके साथ ही अपने बॉन्ड खरीद कार्यक्रम को समाप्त करने की गति को तेज कर रहा होगा, इस पैमाने पर विदेशी पूंजी का इंतजाम कर पाना टेढ़ी खीर होगा.

वर्ष 2020 और 2021 भारतीय कंपनियों के लिए काफी सुनहरे रहे, जिन्होंने काफी सस्ते में अरबों डॉलर का इंतजाम कर लिया. इसके पीछे केंद्रीय बैंकों द्वारा महामारी से निपटने की रणनीति के तौर पर बाजार में अभूतपूर्व मात्रा में तरलता डालने का हाथ रहा. व्यावहारिक तौर पर यह तरलता महोत्सव अब समाप्त हो गया है.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


एमके वेणु, http://thewirehindi.com/203779/budget-2022-big-infra-push-may-flag-in-face-of-global-inflation/


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