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भूख | सतत् विकास लक्ष्य
सतत् विकास लक्ष्य

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इकोनॉमिक एंड सोशल सर्वे ऑफ एशिया एंड द पैसिफिक 2023: रिथिंकिंग पब्लिक डेब्ट फॉर द सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स, 5 अप्रैल 2023 को जारी

 

ये रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र संघ के एशिया और प्रशांत क्षेत्र हेतु बने आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) ने जारी की है। इस रिपोर्ट को प्राप्त करने के लिए कृपया यहाँ, यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए!

 

एशिया–प्रशांत क्षेत्र में ‘औसत पब्लिक डेब्ट’ पिछले 18 वर्षों के उच्चतम शिखर पर।

कोविड महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में आई मंदी से निपटने के लिए सार्वजनिक ऋण के स्तर को बढ़ाना पड़ा।

 

क्या है ये रिपोर्ट?

आर्थिक वृद्धि का पहिया दौड़ता रहे इसके लिए सरकारें ऋण लेती हैं। जिसे तकनीकी भाषा में पब्लिक डेब्ट (सार्वजनिक ऋण) कहा जाता है। इस रपट में कुल पांच अध्याय हैं। जिनमें एशिया–प्रशांत भूभाग में बसे ‘राष्ट्र–राज्यों’ की सार्वजनिक ऋण के मामले में वस्तुस्थिति का विश्लेषण है; सार्वजनिक ऋण और विकास के आपसी संबंधों को दर्ज किया है; साथ ही, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने के लिए ज़रूरी सुझावों का खाका भी पेश किया है।

स्रोत- Economic social survey

 

रपट की मुख्य बातें—

 

  • एशिया–प्रशांत क्षेत्र के विकासशील देशों का साल 2022 में आर्थिक प्रदर्शन कमजोर रहा। ऊंची महंगाई दरों के कारण सामाजिक–आर्थिक विषमता की खाई बढ़ती जा रही है; मूल्य दरों में स्थिरता लाना जरूरी है अन्यथा सतत विकास लक्ष्यों तक नहीं पहुंच पाएंगे।
  • वैश्विक मंदी, उच्च महंगाई दर और युद्ध के कारण अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है, ऐसे में वर्ष 2023–24 में भी आर्थिक बढ़ोतरी की संभावना कम है।
  • वित्तीय वर्ष 2023–24 के लिए रियल जीडीपी में अनुमानित बढ़ोतरी 4.2 फीसद और वर्ष 2024 में 4.7% रहने का अनुमान लगाया है(एशिया–प्रशांत अर्थव्यवस्थाओं के लिए)।

 

जब मंदी आती है तब बाजार में धन की आवक कम हो जाती है।जिसके कारण आर्थिक वृद्धि का पहिया धीमा हो जाता है। सरकार, अपनी ओर से पैसे खर्च करती है; बाजार में धन की आवक बढ़ जाती है। इसी तरह जनता के माध्यम से पैसे खर्च करवाने के लिए केंद्रीय बैंक ब्याज दरों (रेपो रेट इत्यादि) को कम करती है।

सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज लेकर इंसान बाजार में खरीददारी के लिए जाता है। बाजार में मांग बढ़ जाती है। मांग बढ़ते ही मुद्रास्फीति यानी महंगाई भी बढ़ जाती है।

ऐसे में केंद्रीय बैंकों के सामने द्वंद्व आ जाता है— आर्थिक बढ़ोतरी के लिए सस्ती दरों पर कर्ज देना भी जरूरी है और बाजार में बढ़ रही महंगाई दर को भी काबू में रखना जरूरी।

महामारी के बाद में आर्थिक वृद्धि की गति धीमी है। और महंगाई दरें बढ़ी हुई हैं।

 

सार्वजनिक ऋण और विकास के संबंधों पर पुनर्विचार—

सामान्यतः ये माना जाता है कि सार्वजनिक ऋण में बढ़ोतरी होने पर विकास की अविरल धारा तेज गति से बहती है। पर सार्वजनिक ऋण और विकास के बीच में मौजूद तारतम्यता के गड़बड़ा जाने से विकास का मकसद अधूरा रह जाता है।

सतत विकास के एजेंडे को लागू किए आठ साल हो गए हैं पर एशिया–प्रशांत क्षेत्र में एक भी ऐसा देश नहीं है जो किसी भी लक्ष्य को हासिल करने की राह पर हो। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सार्वजनिक ऋण और विकास के संबंधों पर पुनः विचार किया जाए।

अगर सार्वजनिक ऋण का विवेकपूर्ण इस्तेमाल किया जाए, तो वो विकास के लिए एक कारगर वाहक साबित हो सकता है।

 

सार्वजनिक ऋण और एशिया–प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाएं

  • ऋण के मामले में ‘उच्च जोखिम’ की श्रेणी में आने वाले देशों की संख्या निरंतर बढ़ रही हैं।
  • यूक्रेन के साथ छिड़े युद्ध ने इस तनाव को और गहरा कर दिया है।
  • सार्वजनिक ऋण के नज़रिए से दो तिहाई देशों ने वर्ष 2008 के स्तर को छू लिया है।
  • वर्तमान में 19 देशों को ऋण के मामले में ‘उच्च जोखिम’ की श्रेणी में रखा गया है।



Team IM4Change.org
 

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