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कानून‌ और इन्साफ | भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार

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क्या कहती है सरकार ?

 

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज के अनुसार-
(http://www.planningcommission.nic.in/plans/planrel/fiveyr/
11th/11_v1/11th_vol1.pdf
):

  • राजकाज की दशा सुधारने की राह में एक बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार से लड़ना है।आम मान्यता बन चली है कि प्रशासनिक अमलों के हर गोशे में भ्रष्टाचार व्याप्त है।
  • कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत को उन देशों की सूची में रखा है जहां भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर व्याप्त है।मिसाल के तौर पर ट्रान्सपेरेन्सी इंटरनेशनल ने साल २००६ में जो इंडेक्स जारी किया उसमें भारत का स्थान भ्रष्टाचार के मामले में ७० वां था और इस संस्था ने भारत को भ्रष्टाचार के मामले में ब्राजील, चीन, मिस्र और मैक्सिको के करीब माना।
  • लोक कल्याण की सेवाओं में आज भ्रष्टाचार काफी गंभीर स्थिति में पहुंच गया है। पिछले कुछ दशकों में भ्रष्टाचार के प्रसार और आकार में बड़ी तेजी आयी है। सरकारी कामकाज के की स्तरों पर भ्रष्टाचार व्याप्त है और हर स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार एक दूसरे को बढ़ावा देते हुए चल रहा है साथ ही सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की छवि पर इसका खराब असर पड़ रहा है।
  • भ्रष्टाचार से समाज का नेतिक ताना-बाना तो कमजोर होता ही है,इसका सीधा और प्रत्यक्ष असर देश की राजनीतिक स्थिति, आर्थिक विकास और राजकाज (गवर्नेंस) की बेहतरी पर पड़ता है। अगर समाज में भ्रष्टाचार व्याप्त हो तो वहां मूल्य आधारित राजनीति अपने मायने खो देती है। ऐसे समाज में यह विश्वास कायम नहीं रह पाता कि सरकार निष्पक्ष होकर सबके लिए समान रुप से विधि पर आधारित शासन चला रही है।
  • भ्रष्टाचार के कारण जिस राजस्व को लोक कल्याण के कार्यों के लिए सरकारी खजाने में जाना चाहिए वही राजस्व निजी हाथों में इक्कठा होने लगता है।ईमानदार सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों का मनोबल गिरता है जबकि भ्रष्टों को बढ़ावा मिलता है।आज सरकारी कामकाज में जो फिजूलखर्ची, काहिली और गैर-बराबरी दिखाई देती है उसका एख बड़ा कारण भ्रष्टाचार ही है।
  • गरीबों पर भ्रष्टाचार की गाज खास रुप से गिरती है क्योंकि उनके पास रिश्वत देने के लिए रकम नहीं होती।भ्रष्टाचार के कारण निजी क्षेत्र को गति मिलती है और इसकी कीमत आखिरकार उपभोक्ता को चुकानी पड़ती है। लोक-कल्याणकारी सेवाओं का बुनियादी ढांचा चरमरा उठता है। भ्रष्टाचार के कई और दुष्प्रभाव गिनाये जा सकते हैं लेकिन इस सिलसिले में सबसे जरुरी बात यह है कि भ्रष्टाचार जब भी बढ़ता और गहरा होता है, सामाजिक जीवन के ताने बाने पर बुनियादी अर्थों में दुष्प्रभाव डालता है इसलिए भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए हरसंभव और तत्काल कदम उठाये जाने चाहिए।
  • भारत में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार और उसके दुष्प्रभावों पर चहुंओर चिन्ता व्याप्त है। इस समस्या ने लोगों के मन में असहाय होने का भाव पनपा है और लोग अब भ्रष्टाचार को रोजमर्रा की बात मानने लगे हैं। इससे एक खास तरह का नियतिवाद उनके मन में घर करता जा रहा है और कभी कभी तो लोग-बाग निराशा में भ्रष्टाचार के पक्ष में तर्क भी देने लगते हैं।
  • नतीजतन भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एकतरफा विकल्प सुझाये जाते हैं। मिसाल के तौर पर कोई कहता है कि संविधान में मूलगामी बदलाव करने होंगे तो कोई कहता है कि पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था को निजी हाथों में सौंप देना चाहिए और हर सरकारी काम का विकेंद्रीकरण कर देना चाहिए।

 

कुछ सुझाव जिनपर गंभीरता पूर्वक अमल करना होगा-

  • भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम,१९८८ और इससे संबंधित कानूनों की पुनर्समीक्षा की जाय और केंद्र तथा राज्यों के सतर्कता आयोग को ज्यादा अधिकार दिए जायें।
  • कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जेनरल और उससे जुड़ी व्यवस्था की भूमिका मजबूत करनी होगी ताकि भ्रष्टाचार के मामलों का निगरानी हो सके और सरकारी धन के लेन देन में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
  • राज्यों और उनकी संस्थाओं द्वारा लोक-कल्याण के लिए जो सेवाएं चलायी जा रही हैं उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर नजर रखना जरुरी है।
  • निजी उद्यम (ये चाहे स्वदेशी हों या फिर बहुराष्ट्रीय) के साथ सरकार का लेन-देन एक आचार संहिता के आधार पर हो और इस आचार संहिता को कड़ाई से लागू किया जाय।
  • जज,वकील,डाक्टर,मीडियाकर्मी,चार्टर्ड एकाउन्टेंट और आर्किटेक्ट सरीखे लोग भ्रष्टाचार पर निगाह रखने के लिए खुद के तईं भी व्यवस्था कायम करें।

 

भारत के बारे में ट्रान्सपेरेन्सी इंटरेनेशनल इंडिया के कुछ तथ्य-

  • ट्रान्सपेरेन्सी इंटरनेशनल इंडिया द्वारा तैयार किए गए करप्शन परशेप्शन इंडिक्स में भारत साल २००८ में १७९ देशों के बीच ८५ वें स्थान पर रहा।िस तरह करप्शन परसेप्शन इंडेक्स पर बारत की स्थिति में साल २००२ के २.७ के मुकाबले साल २००८ में ३.४ अंकों का सुधार हुआ।
  • साल २००८ के जुलाई में वाशिंग्टन पोस्ट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक भारत के ५४० सांसदों में एक चौथाई पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं।इनमें मानव-तस्करी के रैकेट चलाना,गबन करना,बलात्कार और हत्या करने जैसे अपराध भी शामिल हैं।
  • ट्रांसपेरेन्सी इंटरनेशनल के साल २००५ के अध्ययन के मुताबिक भारत में ५० फीसदी लोगों को सरकारी दफ्तरों में काम करवाने के लिए रिश्वत देने अथवा किसी बिचौलिये को तलाशने का निजी और प्रत्यक्ष अनुभव है।
  • ट्रान्सपेरेन्सी इंटरनेशनल के अनुसार भारत की अदालतों में व्याप्त भ्रष्टाचार का कारण मुकदमों के फैसले में होने वाली देरी,जजों की संख्या में कमी और अदालती कार्रवाही का जटिल होना है।कानूनों की अधिकता से इन सब कारणों में और इजाफा होता है।

 

 



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