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चर्चा में.... | बढ़ रही है कर्जदार किसानों की तादाद- एनएसएसओ
बढ़ रही है कर्जदार किसानों की तादाद- एनएसएसओ

बढ़ रही है कर्जदार किसानों की तादाद- एनएसएसओ

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published Published on Dec 22, 2014   modified Modified on Dec 22, 2014

विकास के बहुमुखी हल्ले के बीच कृषि-संकट जारी है। तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र से रह-रह कर आ रही किसान-आत्महत्याओं की खबरों के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण(एनएसएसओ) द्वारा इस माह जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 52 फीसदी खेतिहर परिवार कर्ज में डूबे हैं। रिपोर्ट में का यह तथ्य जुलाई 2012 से जून 2013 के बीच की स्थिति के बारे में है।(देखें नीचे दी गई लिंक)


तकरीबन साढ़े चार हजार गांवों के सर्वेक्षण पर आधारित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 70वें दौर की इस रिपोर्ट के अनुसार आंध्रप्रदेश में कर्ज में डूबे किसान-परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा((92.9%) है। तेलंगाना के 89.1% किसान परिवार कर्ज में डूबे हैं जबकि तमिलनाडु में कर्ज के बोझ तले दबे किसान परिवारों की तादाद 82.5% है। असम (17.5%), झारखंड (28.9%),और छत्तीसगढ़ (37.2%) उन राज्यों में शुमार हैं जहां कर्ज में डूबे किसान-परिवारों की संख्या अन्य राज्यों से अपेक्षाकृत कम है।


रिपोर्ट के अनुसार केरल के किसान-परिवारों पर औसत कर्ज की मात्रा सबसे ज्यादा (2,13,600/-रुपये) सर्वाधिक है। इसके बाद कर्ज का सर्वाधिक भार आंध्रप्रदेश के किसान-परिवारों ( 1,23,400/- रुपये) पर है। पंजाब के किसान-परिवारों पर कर्ज का औसत भार ( 1,19,500/- रुपये का है। इस मामले में असम ( 3,400/-रुपये), झारखंड ( 5,700/-रुपये) तथा छत्तीसगढ़ ( 10,200/-रुपये) के किसान-परिवार अन्य राज्य के किसानों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं।


की इंडीकेटर्स ऑफ सिचुएशन असेसमेंट सर्वे ऑफ एग्रीकल्चरल हाऊसहोल्ड इन इंडिया नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान-परिवारों पर चढ़े कर्ज में 60% हिस्सा सांस्थानिक स्रोतों से लिए गए कर्ज का है। इसके अंतर्गत सरकार (2.1%), सहकारी समितियां (14.8%) तथा बैंक (42.9%) शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार किसानों पर चढ़े कर्ज में सूदखोर महाजनों से लिए गए कर्ज का हिस्सा बहुत ज्यादा(25.8%) है।


रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि सांस्थानिक स्रोतों से कर्ज हासिल करने वाले किसान-परिवारों में ज्यादा बड़े रकबे के किसान-परिवारों की संख्या कम बड़े रकबे की मिल्कियत वाले किसानों की तुलना में बहुत ज्यादा है। सांस्थानिक कर्ज का भार ज्यादा है। मिसाल के लिए जिन किसानों के पास 0.01 हैक्टेयर या इससे कम रकबे की जमीन है उनमें मात्र 15 प्रतिशत किसान-परिवारों ने सांस्थानिक स्रोतों से कर्ज लिया है जबकि 10 हैक्टेयर या इससे ज्यादा रकबे की मिल्कियत वाले किसान-परिवारों में सांस्थानिक स्रोतों से कर्ज लेने वाले किसान-परिवारों की संख्या लगभग 79% है।


रिपोर्ट में कर्ज में डूबे किसान-परिवारों की आमदनी और खर्च के बीच का अन्तर भी बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार 2012 के जुलाई माह से 2013 के जून माह के बीच के आय-व्यय के आंकड़ों से जाहिर होता है कि किसान-परिवारों की औसत मासिक आमदनी 6426/- रुपये की रही जबकि इस अवधि में प्रत्येक किसान-परिवार का औसत मासिक उपभोग-व्यय 6223/- रुपये का था।


गौरतलब है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 59 वें दौर की गणना पर आधारित रिपोर्ट (जनवरी-दिसंबर 2003) में कहा गया था कि देश के 48.6% किसान-परिवारों पर कर्जभार है लेकिन नई रिपोर्ट में यह संख्या बढ़ गई है। 1991 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की ऐसी ही रिपोर्ट में कर्ज में डूबे किसान परिवारों की संख्या 26 प्रतिशत बतायी गई थी। वर्ष 2003 की रिपोर्ट में किसान-परिवारों पर औसत कर्ज-भार 12,585 रुपये का था। एनएसएसओ की नई रिपोर्ट में यह कर्ज-भार चार गुना ज्यादा बढ़कर 47000 रुपये हो गया है।


राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट Key Indicators of Situation Assessment Survey of Agricultural Households in India (January, 2013- December, 2013) के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य़:


• भारत में किसान-परिवारों की संख्या तकरीबन 9 करोड़ 20 लाख है। यह कुल ग्रामीण-परिवारों की संख्या का 57.8 फीसदी है।


• देश के कुल किसान-परिवारों का 20 प्रतिशत उतरप्रदेश में है। यूपी में किसान-परिवारों की संख्या 1 करोड़ 80 लाख 5 हजार है। राजस्थान में किसान-परिवारों की संख्या 78.4% है जबकि उतरप्रदेश में 74.8% और मध्यप्रदेश में 70.8%।


• देश के कुल खेतिहर परिवारों में 45 प्रतिशत खेतिहर-परिवार ओबीसी श्रेणी के हैं, तकरीबन 16% खेतिहर-परिवार अनुसूचित जाति श्रेणी के जबकि अनुसूचित जनजाति श्रेणी के खेतिहर-परिवारों की संख्या 13% है। गौरतलब है कि देश के कुल ग्रामीण परिवारों में ओबीसी श्रेणी के ग्रामीण परिवारों की संख्या 45 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जाति के ग्रामीण परिवारों की संख्या 20% तथा अनुसूचित जनजाति श्रेणी के परिवारों की संख्या 12% बतायी गई है।


• खेतिहर परिवारों की आमदनी का मुख्य स्रोत खेती है। इसके अतिरिक्त खेतिहर-परिवारों के लिए आमदनी का जरिया दिहाड़ी मजदूरी या फिर नियमित अवधि वाली नौकरी है। सर्वेक्षण के दौरान तकरीबन 63.5% परिवारों ने खेती को अपनी आमदनी का मुख्य जरिया बताया जबकि 22 प्रतिशत परिवारों ने दिहाड़ी मजदूरी अथवा नियमित अवधि की नौकरी को अपनी आमदनी का मुख्य जरिया बताया।


• बड़े राज्यों में ज्यादातर ग्रामीण परिवारों ने अपनी आमदनी का मुख्य जरिया खती-बाड़ी तथा पशुपालन को बताया। सिर्फ केरल में 61 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने अपनी आमदनी का मुख्य जरिया खेती-बाड़ी से अलग बताया।असम, छत्तीसगढ़, तेलंगाना जैसे राज्यों में 80 प्रतिशत किसान-परिवारों की आमदनी का मुख्य स्रोत खेती ही है। तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब और हरियाणा के लगभग 9 प्रतिशत किसान-परिवारों ने पशुपालन को अपनी आमदनी का मुख्य स्रोत बताया।


• देश के 93 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास घर की जमीन के अतिरिक्त भी कुछ जमीन है जबकि 7 प्रतिशत किसान-परिवार ऐसे हैं जिनके पास सिर्फ घराड़ी की ही जमीन है। देश के ग्रामीण अंचलों में तकरीबन 0.1% खेतिहर परिवार भूमिहीन हैं। जिन किसान-परिवारों के पास 0.01 हैक्टेयर या इससे कम रकबे की जमीन है उनमें 70 फीसदी परिवारों के पास सिर्फ घराड़ी की ही जमीन है।


• राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो देश में 78.5% किसान-परिवारों ऐसे हैं जिनकी जमीन अपने गांव में ही है, गांव के दायरे से बाहर उनके पास कोई जमीन नहीं है। जिन किसान-परिवारों ने कहा कि हमारे पास गांव के बाहर भी जमीन है उनमें 17.5% परिवारों के पास जमीन अपने राज्य में है जबकि 4 प्रतिशत के पास जमीन राज्य के बाहर भी है।


• 12 प्रतिशत किसान परिवारों के पास सर्वेक्षण के समय राशन-कार्ड मौजूद नहीं थी। तकरीबन 36 प्रतिशत किसान-परिवारों के पास बीपीएल कार्ड था। 5 प्रतिशत खेतिहर परिवारों के पास अंत्योदय कार्ड मौजूद था।


• धान, गेहूं, दाल, तेलहन जैसे पैदावार किसान-परिवार स्थानीय दुकानदारों को बेचते हैं या फिर मंडी में। सरकारी एजेंसी और सहकारी समिति को किसान-परिवार द्वारा बेचे गये पैदावार का हिस्सा बहुत कम है। इससे पता चलता है कि कृषि-उपज के अर्जन की सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल कम हो रहा है और किसानों को उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य अपेक्षित तौर पर नहीं मिल रहा।


• आंकड़ों से पता चलता है कि किसान-परिवारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर जागरुकता कम है। अगर गन्ने को अपवाद मान लें तो फिर जिन किसान-परिवारों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानकारी है, उन किसान-परिवारों से भी पैदावार की बिक्री खास सरकारी अभिकरणों को कुछ खास नहीं होती। न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानने वाले किसान-परिवारों में से महज 50 फीसदी परिवार ही अपनी उपज सरकारी अभिकरणों के मार्फत बेचते हैं।


• सरकारी अभिकरणों को पैदावार ना बेचने की मुख्य वजहों में शामिल है-: ऐसी एजेंसी का मौके पर मौजूद ना होना, स्थानीय स्तर पर खरीद की ऐसी किसी प्रणाली की गैर-मौजूदगी या बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कहीं ज्यादा कीमत का हासिल होना।

इस कथा के विस्तार के लिए लिंक--

Key Indicators of Situation Assessment Survey of Agricultural Households in India (January - December 2013), NSS 70th Round, Ministry of Statistics and Programme Implementation, GoI, December 2014 (Please click here to access)

 

Some Aspects of Farming, 2003, Situation Assessment Survey of Farmers, National Sample Survey (NSS) 59th Round, (January-December 2003) (Please link1 , link2 to access) 

 

Report of the Expert Group on Agricultural Indebtedness (July, 2007) (Please click here to access) 

 

More than 50% of farm households in debt -Rukmini S, The Hindu, 21 December, 2014 (Please click here to access)

 

Nearly 52% agricultural households indebted, shows NSSO survey -Sayantan Bera, Livemint.com, 20 December, 2014 (Please click here to access)

 

Image Courtesy: Himanshu Joshi

 

 



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