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चर्चा में.... | किसान-आत्महत्याओं में कमी लेकिन खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं में बढ़ती के रुझान
किसान-आत्महत्याओं में कमी लेकिन खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं में बढ़ती के रुझान

किसान-आत्महत्याओं में कमी लेकिन खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं में बढ़ती के रुझान

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published Published on Apr 19, 2018   modified Modified on Apr 19, 2018

एक साल के दरम्यान खेती-किसानी के काम में लगे लोगों की आत्महत्या घटनाओं में 9.8 फीसद की कमी आई है- क्या इस तथ्य को खेती-किसानी की हालत में सुधार का संकेत मानें ? यह तथ्य केंद्रीय कृषि मंत्रालय के राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रौतेला के एक जवाब के जरिए सामने आया है.


बजट-सत्र के दौरान राज्यमंत्री ने 20 मार्च को एक प्रश्न(संख्या-4111) के जवाब में संसद में बताया कि साल 2015 में खेती-किसानी से जुड़े 12602 लोगों ने आत्महत्या की जबकि 2016 में आत्महत्या करने वाले ऐसे लोगों की तादाद घटकर 11370 हो गई.

 

जीविका के लिए मुख्य रुप से खेती पर निर्भर लोगों की आत्महत्या की तादाद में आयी कमी के आधार पर देश के कृषि-संकट के बारे में कोई राय बनाने से पहले इन तथ्यों पर गौर करें: साल 2015 में किसान आत्महत्याओं की संख्या 8007 थी जो 2016 में घटकर 6351 हो गई लेकिन इसी अवधि में खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या की संख्या में 9.2 फीसद का इजाफा हुआ. साल 2015 में 4595 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की जबकि साल 2016 में आत्महत्या करने वाले खेतिहर मजदूरों की तादाद बढ़कर 5019 हो गई.

 

अगर राज्यवार देखें तो वर्ष 2016 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा तादाद(1111) में खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की. इसके बाद कर्नाटक (867) तथा मध्यप्रदेश(722) का नाम लिया जा सकता है. इसी तरह वर्ष 2016 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा संख्या(2550) में किसानों ने आत्महत्या की. किसान-आत्महत्या के लिहाज से शीर्ष के दो अन्य राज्यों में कर्नाटक तथा तेलंगाना का नाम लिया जा सकता है. साल 2016 में कर्नाटक में आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद 1212 थी जबकि तेलंगाना में ऐसे किसानों की संख्या 632 रही.

 

बड़े राज्यों में शुमार पश्चिम बंगाल में जीविका के लिए मुख्य रुप से खेती-किसानी पर निर्भर लोगों में आत्महत्या करने वालों की संख्या नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के दस्तावेज में साल 2015 से ‘शून्य' बतायी गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘शून्य' का आंकड़ा विश्वसनीय नहीं.

 

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के विश्लेषण(इससे संबंधित आरेख के लिए यहां क्लिक करें) से पता चलता है कि 2014 में जीविका के लिए खेती-किसानी पर निर्भर जितने लोगों ने आत्महत्या की उसमें खेतिहर मजदूरों की संख्या 54.29 थी. साल 2015 में ऐसी आत्महत्याओं की संख्या 36.46 फीसद तथा साल 2016 में 44.14 प्रतिशत रही. बहरहाल, कृषि-क्षेत्र से जुड़ी कुल आत्महत्याओं में किसान आत्महत्याओं की तादाद साल 2014 में 45.17 प्रतिशत, 2015 में 63.54 प्रतिशत तथा 2016 में 55.68 प्रतिशत रही.

 

गौरतलब है कि लोकसभा में प्रश्न का उत्तर देते हुए कृषि मंत्रालय के राज्यमंत्री ने नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के आंकड़ों को आधार बनाया. एनसीआऱबी के साल 2016 के आंकड़ें अभी अपने स्वरुप में अस्थायी हैं और इनका प्रकाशन सार्वजनिक रुप से एक्सीडेन्टल डेथ्स एंड स्यूसाइडस् इन इंडिया नाम के दस्तावेज में नहीं हुआ है.

 

राज्यमंत्री ने लोकसभा के अपने जवाब में यह नहीं बताया कि साल 2016 में कृषि-क्षेत्र से संबंधित आत्महत्याओं की मुख्य वजह क्या रही. यों अनुमान के लिए साल 2015 के एक्सीडेन्टल डेथ्स् एंड स्यूसाइडस् नाम के दस्तावेज को देखा जा सकता है. इसमें कर्जदारी और कृषि-संबंधी कारणों को कृषि-क्षेत्र से जुड़ी आत्महत्याओं का प्रमुख कारण बताया गया है. रिपोर्ट में पारिवारिक समस्या तथा बीमारी को भी किसानों तथा खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याओं की प्रेरक वजह के रुप चिन्हित किया गया है.

 

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के साल 2015 के एक्सीडेन्टल डेथ्स् एंड स्यूसाइडस् रिपोर्ट में किसान के अंतर्गत उन व्यक्तियों को शामिल किया गया है जिनका मुख्य पेशा खेती है और जो अपनी मिल्कियत वाली जमीन या फिर पट्टे पर ली गई जमीन पर खेतिहर मजदूर की सहायता या फिर बिना इस सहायता के खेती करता है. खेतिहर मजदूर के अंतर्गत रिपोर्ट में उन व्यक्तियों को शामिल माना गया है जो जीविका के लिए मुख्य रुप से खेती/बागवानी के क्षेत्र में मजदूरी करते हैं और जिनकी आमदनी का मुख्य स्रोत खेतिहर मजदूरी है.

 

गौरतलब है कि किसान भूमालिक से पट्टे पर जमीन लेकर खेती करते तो हैं लेकिन इसका लिखित करार दोनों के बीच बहुधा नहीं होता. लिखित करार के अभाव में ऐसे खेतिहरों की गिनती आधिकारिक दस्तावेजों में किसान के रुप में नहीं की जाती. इसी तरह महिला किसान या फिर आदिवासी किसान को जमीन के मालिकाने से संबंधित दस्तावेज उनके नाम पर ना होने से किसान की श्रेणी में आधिकारिक तौर पर नहीं गिना जाता. अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे लोगों की आत्महत्याओं की गिनती किसान-आत्महत्या के अंतर्गत आधिकारिक दस्तावेजों मे नहीं होती.

 

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो कृषि मंत्रालय तथा गृहमंत्रालय की सलाह पर किसानों तथा खेतिहर मजदूरों के आत्महत्या के आंकड़े अलग-अलग श्रेणी(किसान तथा कृषि मजदूर) में एकत्र कर रहा है. ध्यान देने की एक बात यह भी है कि गणना की पद्धति में बदलाव के कारण 2013 या इसके पहले के आंकड़ों से 2014 या इसके बाद के आंकड़ों की आपसी तुलना नहीं की जा सकती.

 

इस कथा के विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक्स पर क्लिक करें-

 

Reply to Unstarred Question No. 4111 dated 20th March, 2018, Lok Sabha, please click here to access


Chapter-2A: Suicides in Farming Sector, Accidental Deaths & Suicides in India (2015), please click here to access

 

Death in the farmlands: Suicides in agriculture sector decline 32% in 2016, Business Standard, 8 April, 2018, please click here to access  

Big rise in farmer suicides in four states during 2016, says NCRB data -Sanjeeb Mukherjee, Business Standard, 23 March, 2018, please click hereto access     

10% drop in farm suicides, 11,000 cases in 2016: Govt -Vishwa Mohan, The Times of India, 22 March, 2018, please click here to access  

Agricultural workers suicides rising, but 2016 data shows overall drop in farmer suicides, The Hindu, 22 March, 2018, please click here to access  

The slaughter of suicide data -P Sainath, Frontline, 21 August, 2015, please click here to access   



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