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चर्चा में.... | 'बीते एक साल में 20 लोगों की भुखमरी से मौत, सभी वंचित तबके के'-- रोजी रोटी अधिकार अभियान
'बीते एक साल में 20 लोगों की भुखमरी से मौत, सभी वंचित तबके के'-- रोजी रोटी अधिकार अभियान

'बीते एक साल में 20 लोगों की भुखमरी से मौत, सभी वंचित तबके के'-- रोजी रोटी अधिकार अभियान

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published Published on Jun 24, 2018   modified Modified on Jun 25, 2018
उत्तर कर्नाटक के नारायण, झारखंड के रूपलाल मरांडी, बरेली की सफीना अशफाक और ओड़ीशा के कुंदरु नाग के बीच क्या समानता हो सकती है ? शायद, कोई नहीं- सिवाय इसके कि ये सभी समाज के वंचित वर्ग के हैं और इन सबकी मौत पिछले एक साल के दौरान भुखमरी के कारण हुई तथा इन सभी को एक ना एक कारण से पीडीएस से अनाज नहीं मिल सका.(पिछले एक साल के दौरान भुखमरी से हुई मौतों की सूची के लिए यहां क्लिक करें)


दलित समुदाय के नारायण की मौत 7 जुलाई 2017 को हुई. उन्हें छः महीनों तक राशन नहीं मिला क्योंकि उनका राशन कार्ड आधार से जुड़े न होने के कारण रद्द हो गया था. आदिवासी समुदाय के रुपलाल मरांडी की मौत 23 अक्तूबर 2017 को हुई. परिवार को दो महीनों का राशन नहीं मिला क्योंकि न तो रूपलाल और न ही उसकी बेटी राशन दुकान में आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन में सफ़ल रहे.


साल 2017 के नवंबर महीने में भुखमरी की शिकार होने वाली अल्पसंख्यक समुदाय की महिला सफीना अशफाक और ओड़ीशा के बरगढ़ के ओबीसी समुदाय के कुंदरु नाग की कहानी इससे अलग नही है. कुंदरु नाग की मौत 18 जून 2018 को हुई है. कुंदरू और उनके पति को राशन नहीं मिला क्योंकि वे वृद्धावस्था और बीमारी के कारण पंचायत भवन तक नहीं जा पाए जबकि साल 2017 के नवंबर महीने में भुखमरी के कारण मौत की शिकार हुई सकीना बीमारी के कारण आधार-आधारित बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए राशन दुकान नहीं जा पाई थी.


रोजी रोटी अधिकार अभियान के मुताबिक पिछले एक वर्ष में देशभर में कम से कम 20 लोगों की भूख से मौतें हुई हैं - झारखंड में 12, कर्नाटक में 3, उत्तर प्रदेश में 3 और ओडीशा में 2 (संलग्न तालिका देखें). मृतकों में 11 वर्षीय संतोषी कुमारी से लेकर 67 वर्षीय एतवरिया देवी शामिल हैं. कम से कम 11 मामलों में आधार सम्बंधित विफ़लता का भूख में सीधा योगदान था. भूख के सारे शिकार दलित, आदिवासी, अन्य पिछड़ी जाति या मुस्लिम समुदाय से हैं. सब मामलों में सस्ते अनाज और सामाजिक सुरक्षा पेंशन न मिलने के कारण मृतक को कई दिनों के लिए खाना नहीं मिल पाया.


सरकार का पक्ष है कि आधार के कारण मनरेगा और पीडीएस जैसे कार्यक्रमों में फर्जीवाड़ा रोकने में मदद मिली है और इसके कारण पिछले तीन सालों में 56 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि आधार के कारण होने वाली बचत के आंकड़े विश्वसनीय नहीं हैं क्योंकि आरटीआई की एक अर्जी के जवाब में मिली सूचनाओं से यह जाहिर होता है कि ज्यादातर मामलों में सरकार के पास बचत के पुख्ता तथ्य नहीं हैं.


अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा ने इस साल की शुरुआत में अपने एक आलेख में ध्यान दिलाया था कि आधार के कारण सालाना 11 अरब डॉलर की बचत की जो बात बार-बार समाचारों में कही जा रही है उसका मुख्य स्रोत वर्ल्ड बैंक डेवलपमेंट रिपोर्ट 2016 है. इस रिपोर्ट की पेज संख्या 195 पर लिखा है कि भारत में कई किस्म की सब्सिडी को प्रत्यक्ष नगदी हस्तांतरण में तब्दील कर दिया गया है और डिजिटल पहचान(आधार संख्या) के जरिए लाभार्थियों को देने के कारण सरकार को सालाना 11 अरब डॉलर की बचत हो रही है. ज्यां द्रेज और रीतिका खेड़ा के अनुसार वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े अध्येता श्वेता बनर्जी द्वारा तैयार एक संक्षिप्त रिपोर्ट के हवाले से दर्ज किए गए हैं लेकिन श्वेता बनर्जी की रिपोर्ट में 11 अरब डॉलर का आंकड़ा बचत से संबंधित नहीं है.


गौरतलब है कि पिछले साल(2017) वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत को 119 देशों की सूची में 100वां स्थान मिला था. सूची में भारत उत्तर कोरिया, बांग्लादेश और इराक जैसों देशों से पीछे था और भारत में भुखमरी की समस्या को गंभीर मानते हुए कहा गया था कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर पूरी संजीदगी से ध्यान देने की जरुरत है.

 

भुखमरी से मौत के हाल के कुछ समाचार

 

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(पोस्ट में इस्तेमाल की गई तस्वीर साभार सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक राजेन्द्र शर्मा जी की फेसबुक वॉल से. राजेन्द्र शर्मा 9 मई 2019 के अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं-- यह नत्थू का परिवार है.नत्थू इतवार को मारा गया.2 महीने से कोई काम नहीं मिला था। पिछले महीने राशन कार्ड से जो गल्ला मिला था उससे दो अठवारा काम चला पिछले सोमवार वह भी खत्म हो गया तो 4 सेर भाई से मांग लाया । 4 दिन पहले वहभी। दोनों बड़े बेटों जिसमे एक 17 साल का था दूसरा 13 का, मजदूरी के लिए नासिक भेज दिया था। शुक्रवार को पता चला कि सरकारी राशन नरैनी में मिलेगा तो खाली पेट साइकिल से निकल पड़ा । 46 डिग्री में यूँ तो उसका कोई कुछ न बिगाड़ पाता लेकिन 3 दिन से खाली पेट में कड़ी प्यास के पानी ने पता नहीं क्या किया कि नत्थू न राशन पैकेट के पास जा सका और न ही घर लौट सका. मृत नत्थू की 37 साल की पत्नी विनीता को लगता है कि पोस्टमार्टम कोई इलाज होता होगा । बताती है कि किसी ने पोस्टमार्टम भी न कराया नहीं तो शायद बच जाते.माँ के आसपास सभी 6 बच्चे भयभीत बैठे हैं । हर आने जाने वाले को कौतुहल से देख रहे हैं। शहर के नामी सरकारी डॉक्टरों की टीम आई है । सबकी लम्बाई नाप रही है। सबका वजन लिया जा रहा है। डॉक्टर कह रहा है कि सब लोग बाँदा आना तो जिला अस्पताल के 11 नम्बर कमरे में खून टेस्ट होगा। बच्चे डरे से हैं कि हमारे खून में अब क्या होने वाला है, वो डॉक्टरों से हां या ना कुछ नहीं बोलते बल्कि उनका चाचा हाथ जोड़ कर उन्हें विनम्रता से विदा करता है।) 



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