Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
चर्चा में.... | मजदूर बनने को मजबूर पंजाब के छोटे किसान
मजदूर बनने को मजबूर पंजाब के छोटे किसान

मजदूर बनने को मजबूर पंजाब के छोटे किसान

Share this article Share this article
published Published on Jun 19, 2014   modified Modified on Jun 20, 2014
हरित क्रांति के बूते भारत में रोटी का टोकड़ा कहलाने वाला और फायदेमंद किसानी के कारण देश के धनी राज्यों में शुमार पंजाब में आज सीमांत और छोटे किसान खेती छोड़कर मजदूर बनने के लिए मजबूर हैं- यह निष्कर्ष है पंजाब में खेती-किसानी की दशा पर केंद्रित एक शोध-अध्ययन का।

अग्रणी जर्नल करेंट साइंस के मई अंक में प्रकाशित सुखपाल सिंह और श्रुति भोगल द्वारा प्रस्तुत डीपीजेंटाइजेशन इन पंजाब: स्टेटस् ऑफ फार्मर्स हू लेफ्ट फार्मिंग शीर्षक इस अध्ययन में कहा गया है कि खेती-किसानी छोड़कर मजदूरी के लिए मजबूर होने वाले ज्यादातर किसान छोटे और सीमांत दर्जे हैं।  यह अध्ययन साल 2012-13 में पंजाब के अलग-अलग खेतिहर परिवेश वाले 6 जिलों के 12 गांवों में 288 किसानों पर किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है। ये किसान 1990 के दशक में विभिन्न कारणों से किसानी छोड़ने को मजबूर हुए।

अध्ययन के अनुसार खेती छोड़ने वाले सर्वेक्षित कुल 288 किसानों में 111  (38.54%) सीमांत दर्जे के किसान थे जबकि 125 (43.40%) छोटे दर्जे के। किसानी छोड़ने वाले किसानों में मंझोले दर्जे के किसानों की संख्या 6 प्रतिशत(कुल 17) से कम थी और बड़े किसानों में यह तादाद महज 3 फीसदी(कुल 6) पायी गई। अध्ययन के तथ्यों बताते हैं खेती छोड़ने वाले किसानों में मजदूर बनने को मजबूर सर्वाधिक किसान छोटे(23.02 प्रतिशत) और सीमांत दर्जे(39.20 प्रतिशत) के हैं।(इस तथ्य के विस्तार के लिए देखें वेबसाइट के अंग्रेजी खंड में दी गई तालिका-1)

बहरहाल पंजाब को जकड़ने वाले खेतिहर संकट की इस कहानी का अंत यहीं नहीं होता। किसानी छोड़कर जीविका के लिए अन्य जरिया ढूंढ़ने वाले किसानों में हर किसी ने मजदूरी का रास्ता नहीं अपनाया। अध्ययन के अनुसार सर्वेक्षित किसानों में तकरीबन 20 फीसदी ने खेती छोड़कर जीविका के तौर पर छोटा-मोटा व्यवसाय कर लिया। जीविका के लिए छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले ऐसे किसानों में छोटे किसानों की संख्या सबसे कम(17.6 प्रतिशत) और मंझोले दर्जे के किसानों की संख्या सबसे ज्यादा(34.08 प्रतिशत) पायी गई। बड़े किसानों में कुल 25.53 प्रतिशत किसानों में जीविका के लिए छोटे-मोटे व्यवसाय का रास्ता अपनाया। (इस तथ्य के विस्तार के लिए देखें वेबसाइट के अंग्रेजी खंड में दी गई तालिका-2)

खेती छोड़ने की वजहें

पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से जुड़े सुखपाल सिंह और श्रुति भोगल ने अपने अध्ययन में बताया है कि पंजाब में खेती को कई तरह के संकटों ने घेर लिया है।खेती की उत्पादकता घटी है, उत्पादन की लागत बढ़ी है, खेती में रोजगार का आकार सिकुड़ा है, किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है और इस सबके साथ पारिस्थिकीगत असंतुलन का भी पक्ष जुड़ा हुआ है। अध्ययन के अनुसार किसान दो स्थितियों में किसानी को छोड़कर जीविका का गैर-खेतिहर जरिया अपनाते हैं। पहली स्थिति सकारात्मक होती है। ऐसी स्थिति के भीतर खेती में मशीनीकरण की बढ़ती प्रवृति, खेती में रोजगार और आमदनी की बढोत्तरी, उच्च शिक्षा, शहरीकरण, अर्थव्यवस्था के भीतर विनिर्माण और सेवा-क्षेत्र का विस्तार आदि को शामिल किया जाता है।  दूसरी स्थिति वह होती है जब खेती की उत्पादकता घट जाय, लागत बढ़े, खेती में रोजगार का आकार सिकुड़े, किसान पर कर्ज का बोझ बढ़ जाय और कुल मिलाकर खेती लाभ का सौदा ना साबित हो।

अध्ययन के अनुसार सर्वेक्षित 6 जिलों के 12 गांवों के खेती छोड़ने वाले कुल 288 किसानों में कुल 30.56 फीसदी ने खेती के लाभदायक ना रह जाने की वजह से जीविका का दूसरा जरिया अपनाया। सर्वेक्षित किसानों में खेती को लाभदायक ना पाकर जीविका का अन्य जरिया अपनाने वाले किसानों में सीमांत किसानों की संख्या सबसे ज्यादा(53 प्रतिशत) थी जबकि छोटे किसानों की संख्या 18.4 प्रतिशत और मंझोले दर्जे के किसानों की संख्या 11.76 प्रतिशत थी।

देश में छोटे और सीमांत आकार के जोत बढ़े लेकिन पंजाब में घटे

अध्ययन के अनुसार 1990 के दशक से खेती के लाभदायक ना रह जाने की स्थिति में छोटी जोत के किसानों में बड़े किसानों के हाथ अपने खेत बड़े किसानों को पट्टे पर देना शुरु किया। इस प्रक्रिया में सीमांत और छोटे किसानों की संख्या में कमी आई। साल 1995-96 में पंजाब में छोटे और सीमांत दर्जे के किसानों की संख्या 3.87 लाख से घटकर साल 2000-01 में 2.96 लाख और 2005-06 में 2.68 लाख रह गई। पंजाब के उलट इस अवधि में देशस्तर पर छोटे और सीमांत जोतों की संख्या में बढोत्तरी हुई(1980–81 में 666.87 लाख,  1990–91 में 834.81 लाख, , 1995–96 में 928.40 लाख, 2000-01 में 980.77 लाख तथा 2005–06 में 1076.24 लाख)। अध्ययन के अनुसार पंजाब में 1990 के दशक से बड़ी आकार वाले जोतों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है जिससे पता चलता है कि पूंजीप्रधान और प्रौद्योगिकी सघन खेती के इस वक्त में पंजाब में छोटे और सीमांत आकार के जोतों की खेती नामुमकिन हो चली है।


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close