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चर्चा में.... | मनरेगा की मजदूरी -- देर ना हो जाये कहीं देर ना हो जाय !
मनरेगा की मजदूरी -- देर ना हो जाये कहीं देर ना हो जाय !

मनरेगा की मजदूरी -- देर ना हो जाये कहीं देर ना हो जाय !

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published Published on Jul 11, 2016   modified Modified on Jul 11, 2016

‘ मजदूरी का भुगतान ना होने और भुगतान में देरी के कारण श्रमिकों के बीच मनरेगा की साख खत्म हो गई है.'

 

मध्यप्रदेश में मनरेगा के क्रियान्वयन की कड़वी सच्चाई बयान करने वाला यह वाक्य ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा गठित कॉमन रिव्यू मिशन(सीआरएम) की हाल ही में जारी एक समीक्षा रिपोर्ट का है.( रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें)

 

मनरेगा के असरदार क्रियान्वयन में फंड की कमी को बड़ी बाधा बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में मनरेगा के काम बीते कई महीनों से रुके पड़े हैं और दुकानदार अपने बकाया बिल का भुगतान ना होने की वजह से आगे के काम के लिए निर्माण-सामग्री देने से मना कर रहे हैं.

 

रिपोर्ट के अनुसार फंड की कमी के कारण काम पूरा हो जाने के एक साल बाद भी मनरेगा के मजदूरों को भुगतान नहीं किया जा सका और कुछ मामलों में मजदूरी का भुगतान होना एक साल बाद अब भी शेष है.

 

मामला सिर्फ मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार फंड की कमी के कारण राजस्थान, कर्नाटक, झारखंड और महाराष्ट्र में भी मनरेगा का काम अपेक्षित गति से नहीं हो रहा है.

 

सीआरएम ने मनरेगा के अंतर्गत मजदूरी भुगतान के लिए हाल में बढ़ते सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को निशाने पर लेते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय को सुझाव दिया है कि अलग-अलग हालात में मजदूरी भुगतान के लिए कौन से तरीके कारगर हो सकते हैं इसकी पहचान की जानी चाहिए.

 

रिपोर्ट के अनुसार जिन इलाकों में बैकिंग व्यवस्था छिटपुट है, पोस्ट ऑफिस की प्रणाली संतोषजनक नहीं है और बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेन्ट की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है वहां सूचना प्रौद्योगिकी आधारित उपाय ना करके मजदूरी के भुगतान के लिए अलग उपाय सोचे जाने चाहिए.

 

मनरेगा के असरदार क्रियान्वयन में सामाजिक जवाबदेही को महत्वपूर्ण मानते हुए सीआरएम ने ध्यान दिलाया है कि रिपोर्ट में शामिल कुल आठ राज्यों में कहीं भी मनरेगा से संबंधित पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रावधानों का ठीक-ठीक पालन नहीं हो रहा है.

 

रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के अंतर्गत किए जाने वाले सामाजिक अंकेक्षण जवाबदेही का वातावरण बनाने में सफल नहीं हो रहे. सामाजिक अंकेक्षण एक रुटीन काम मानकर किया जा रहा है और मनरेगा को जमीन पर क्रियान्वित करने के मामले में कोई विशेष असर नहीं हो पा रहा.

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि शिकायत दर्ज कराने और उसके निवारण का कोई असरदार ढांचा मनरेगा के भीतर अभी तक नहीं खड़ा हो पाया है और मनरेगा के मजदूरों को अपनी शिकायत दर्ज कराने या उसके निवारण में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

 

गौरतलब है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों की समीक्षा के लिए गठित कॉमन रिव्यू मिशन की टोली ने आठ राज्यों आंध्रप्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़ीशा, राजस्थान और त्रिपुरा के दो-दो जिलों का विगत मई महीने के पहले पखवाड़े में दौरा करके अपनी रिपोर्ट पेश की है.

 

रिपोर्ट में मनरेगा के अतिरिक्त प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना(ग्रामीण), दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन तथा नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्रामस् के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं का जायजा लिया गया है.

 

कॉमन रिव्यू मिशन की रिपोर्ट में दर्ज मनरेगा के क्रियान्वयन संबंधी बाधाओं की पुष्टी हाल ही में जारी ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक और रिपोर्ट से भी होती है. ( रिपोर्ट के लिए यहां क्लिक करें)

 

मनरेगा के अंतर्गत हुए कामकाज, पहल और अपनायी गई रणनीतियों पर केंद्रित इस रिपोर्ट में मजदूरी के भुगतान में देरी और फंड की कमी के साथ-साथ कार्यक्रम के बारे में कम जानकारी, घटती जन-भागीदारी, पारदर्शिता के प्रावधानों के अमल में ढिलाई और निगरानी की कमी को ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के क्रियान्वयन की बड़ी बाधाओं में शुमार किया गया है.

 

परफॉर्मेन्स, इनिशिएटिव्स एंड स्ट्रेटजिज्(वित्तवर्ष 2015-16 तथा वित्तवर्ष 2016-17) शीर्षक ग्रामीण विकास मंत्रालय की इस रिपोर्ट के मुख्य तथ्य पाठकों की सुविधा के लिए नीचे लिखे जा रहे हैं----

 

• मनरेगा में वित्तवर्ष 2015-16 में 235.6 करोड़ व्यक्ति-दिवसों के बराबर रोजगार का सृजन हुआ है. यह पिछले पांच सालों में अधिकतम है.

 

• वित्तवर्ष 2015-16 में कुल 5.35 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत रोजगार की मांग की लेकिन केवल 4.82 करोड़ परिवारों को ही रोजगार दिया जा सका यानी 9.9 फीसद परिवारों को मांग के बावजूद रोजगार नहीं हासिल हुआ.

 

• वित्तवर्ष 2015-16 में मनरेगा में प्रति परिवार औसतन 49 व्यक्ति दिवसों के बराबर रोजगार हासिल हुआ जो कि बीते दिन सालों में अधिकतम है.

 

• वित्तवर्ष 2015-16 में मनरेगा में तकरीबन 48.5 लाख परिवारों को 100 दिन का रोजगार हासिल हुआ.

 

• सूखा प्रभावित राज्यों में 28.35 लाख परिवारों को मनरेगा के अंतर्गत 100 दिन का रोजगार हासिल हुआ यानी कुल सूखा प्रभावित राज्यों कुल परिवारों में कुल 5.9 फीसद परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सके.

 

• वित्तवर्ष 2015-16 में मनरेगा में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसत मजदूरी 154 रुपये की रही.

 

• वित्तवर्ष 2015-16 में मनरेगा में कुल 43,848 करोड़ रुपये खर्च हुए जो कि इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से अधिकतम है.

 

• मनरेगा के अंतर्गत हुए जल-संरक्षण, जल-प्रबंधन, सिंचाई, परंपरागत जलाशय, वनीकरण तथा भू-विकास के कामों से तकरीबन 46.57 लाख हैक्टेयर भूभाग को लाभ पहुंचा है.

 

• मनरेगा के अंतर्गत हुए कुल काम में 42 फीसद काम ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास के हैं, 34 फीसद कमजोर तबके के लोगों के लिए निजी संपदा सृजन के, 22 फीसद काम प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के जबकि केवल 2 फीसद काम राष्ट्रीय आजीविका मिशन से संबंद्ध सेल्फ हैल्प ग्रुप्स के लिए तैयार किए जाने वाले कॉमन इंफ्रास्ट्रक्चर के.

 

• मनरेगा के अंतर्गत हुए खर्च में 45 फीसद व्यय ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे के निर्माण पर, 41 फीसद प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर तथा 14 फीसद कमजोर तबके के लिए निजी संपदा सृजन के कामों पर लगा.

 

• कार्यक्रम की शुरुआत के वक्त से चालू किए गए तकरीबन 85 फीसद काम 31 मार्च 2015 तक पूरे किए जा चुके थे.

 

• भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के लिहाज से किए गए मनरेगा के कामों से 3.57 लाख परिवारों को फायदा हुआ है.

 

• जीविका की स्थिति में सुधार के लिहाज से किए गए मनरेगा के कामों से 8.2 लाख परिवारों को फायदा हुआ है.

 

• बंजर भूमि को उपयोगी बनाने के मनरेगा के काम से 7.17 लाख परिवारों को फायदा हुआ है.

 

• तकरीबन 11.53 लाख परिवार मनरेगा के अंतर्गत हुए गृह-निर्माण के कार्यों से लाभान्वित हुए हैं.

 

• मनरेगा के अंतर्गत पशुधन के विकास के कार्यों से 3.19 लाख परिवारों को फायदा हुआ है.

 

• मनरेगा में काम कर रहे 10.78 करोड़ मजदूरों के खाते बैंक और पोस्टऑफिस में हैं, 94 फीसद मामलों में मजदूरी का भुगतान लाभार्थी के खाते में इलेक्ट्रानिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम के जरिए होता है. साल 2016-17 में तकरीबन 60 फीसद भुगतान समय पर हुए.

 

•मनरेगा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर(डीबीटी) का बहुत अच्छा उदाहरण है. अभी तक तकरीबन 7.05 करोड़ मजदूरों के आधार नंबर डेटाबेस में शामिल कर लिए गए हैं और 2.86 करोड़ मजदूरों को आधार केंद्रित भुगतान प्रणाली( आधार बेस्ड पेमेंट ब्रिज सिस्टम-एबीपीएस) के जरिए पारिश्रमिक दिया जा रहा है.

 

 

इस कथा के विस्तार के लिए निम्नलिखित लिंक चटकाये जा सकते हैं---

 

MGNREGA: Performance, Initiatives and Strategies (FY 15-16 and FY 16-17), Ministry of Rural Development, 27 June, 2016, please click here to access

Report of First Common Review Mission, Department of Rural Development (Volume-1), Ministry of Rural Development, 3 June, 2016, please click here to access 


Report of the Working Group on MGNREGA towards formulation of the 12th Five Year Plan, October 2011, please click here to access


Centre spends 22% more on MGNREGS in FY16 -Sanjeeb Mukherjee, Business Standard, 29 June, 2016, please 
click here to access

Govt unveils report on MGNREGA assets: Ministry of Rural Development, The Indian Express, 29 June, 2016, please click here to access

What’s wrong with MGNREGA? All you want to know -Sandip Das, The Financial Express, 29 June, 2016, please click here to access

Only 49 days of work under MGNREGS a record: Chaudhury Birender Singh -Elizabeth Roche, Livemint.com, 29 June, 2016, please click here to access

NREGS scores a point in 1st report card with highest spend of Rs 56,000 crore in FY16 -Ruchika Chitravanshi, The Economic Times, 28 June, 2016, please click here to access

235 crore person days' work generated by MGNREGA: Government, The Economic Times, 28 June, 2016, please click here to access

Review points to procedural lapses in MGNREGS -Sayantan Bera and Elizabeth Roche, Livemint.com, 20 June, 2016, please click here to access

Flaws in many rural development plans -Sanjeeb Mukherjee, Business Standard, 6 June, 2016, please click here to access

Ex-post facto approval to additional employment of 50 days over and above 100 days per household under MGNREGA in areas hit by drought or natural calamities, Press Information Bureau, Cabinet, 16 September, 2015,
http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=126943

 

Steps taken by the Central Government for relief to farmers in view of deficit monsoon, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture, 14 September, 2015, http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=126888 

 

 



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